Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 189
________________ + CA%ASEASI-RIGARASI .. तीसरा आचार्यपद-पंचाचार पालक, उत्तमदेश-कुल-जातिमे उत्पन्न एसे युगप्रधान आचार्य महाराजकी आराधना करते हुवे अपना काल शन्तिसे गालते हैं-चौथा उपाध्याय पद-छादशङ्गमें पारांगत, मूर्ख शिष्योंको भी प्रमोद उपजाने वाले ऐसे पाठक महाराजकी सेवा करते हुवे है | अपना जीवन बिताने लगे-पांचवां साधुपद-क्रोधादि चार कषायोंसे मुक्त, सूत्रार्थ ज्ञाता, यतिधर्म धारक, रत्नत्रयाराधक ऐसे साधु महाराजकी उपासना करते हुवे अपना मानव भव है सफल करने लगे. ___छटा दर्शन पद सड़सट भेदोंसे शोभित-सातवां ज्ञान पद मत्यादि पंच भेदोंसे अलंकृत-आ| ठवां चारित्र पद सत्तर भेदोंसे विभूषित-नवमा तप पद बाह्य आभ्यन्तर करके बारह नेदोंसे है। | विराजित; इन पवित्र चारों पदोंका ध्यान करते हुवे श्रीपाल महाराज अपना जीवन लीला ल. हरसे व्यतीत कर रहे हैं. 1 Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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