Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 193
________________ मात्र प्राणियों के शुभ नावकी प्राप्ति है, शुभ नावोंसे आत्मा निर्मल होता है, निश्चय नयकी अपेक्षा आत्माही नवपद है; तद्यथाः ___ध्यानको करनेवाला ध्याता पुरुष पिंडस्थ, पदस्थ और रूपस्थ, इस तरह त्रिविध अरिहन्तहै पद आत्माको ही माने; पिंडस्थ-शरीरमें रहे हुवे अरिहन्त, पदस्थ-समवसरणमें विराजे हुवे / अरिन्हत, रूपस्थ-सर्वातिशय विराजमानरूप अरिहन्त देव आत्माही है. 1 रूपातीत पौगलिक दशासे सर्वाशे रहित, परिपूर्ण केवलज्ञान, केवलदर्शनादिगुण चतुष्टय विराजित परम परमात्मा | 8 रूप सिजभगवान आत्माही कहा जाता है 2 सूरिमंत्र संबकि पंच प्रस्थानयुक्त, पंचाचार पा| लकादि गुणविशिष्टरूप आचार्य पद आत्माही समझना चाहिये 3 महाप्राण ध्यानके चिन्तक, छादशाङ्ग सूत्रार्थके रहस्य वेत्ता रूप उपाध्याय पद आत्माही मानना चाहिये 4 रत्नत्रय (ज्ञान| दर्शन-चारित्र) से शिवमार्ग साधनेमें सावधान, योगत्रयकी शुक्ल प्रवृनिमें नलालीनरूप माधु IAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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