Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 176
________________ // 5 // So CASSASAKAA-%A || पसाय समस्त समृद्धि तुझे मिली है; श्रीमती रानीके साथ आठ रानियोंने पूर्वजवमें धर्मकी ||| प्रत्ताप | अनुमोदना की थी इससे वे लघु पट्टरानियें हुई, उनमें आठवी रानीने अपनी एक सोक बहनके साथ कलह करते कहाथा कि-हे दुराशये! तुझे सर्प डसो, बस उसही कर्मके उदयसे उसे इस जवमें सर्प डसा, उस सिंह राजाने प्रहारों द्वारा जर्जरीत शरिर होजानेसे दीक्षाका शरण लिया था | और अखीरमें एक मासका अनशन करके अजितसेन पने यहांपर उत्पन्न हुवा, हे नृपते! पूर्व-5 भवमें तेने मेरा एक गाम लूट लिया था इससे इस जवमें मैने तेरा राज्य ले लिया-मेने सातसो सुज टोंको एकही साथ मारेथे. इससे उन्होंने इस वख्त मुझे बंधनोसे बांधकर तेरे सामने पेश | किया-पहिले नी मैने दीक्षाका आश्रय किया था और अब भी उसहीका शरण लिया-शुज नावना द्वारा उसही प्रवृज्याके प्रतापसे मुझे अवधिज्ञान उत्पन्न हुवा; इस प्रकार हे राजन् ! जिस जीवने जैसा कर्म कियाहो वैसाही उसे फल मिलता है-इस नवताप हरणी वाणीको सुनकर श्रीपाल | P राजा हृदयमें विचारने लगे अहा! संसारका नाटक कैसा अज़ब गज़ब है !!! इस वख्त भूपतिने 84- %% Gunrannasun MS JunGut Aaradha

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