Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 174
________________ प्रस्थान चौथा.. // 84 // मांगूगा, तब नृत्योंके द्वारा मुनिराजको बुलाये, शुद्ध जावना छारा विनयपूर्वक उनको क्षमाकर || भूपत्ति सामने खड़ा रहा, श्रीमतीने कहा-हे मुने! मेरेपतिने मुनीश्वरको ताड़ना तर्जनादि कर || मोटा पाप किया है, इसके नाशका को उपाय दिखाईयेगा? करुणारस जंडार मुनि पुङ्गवने कहाहे भद्रे! इसने मुनि संताप-जीवघातादि, गहन पाप किये हैं, उसके नाशका उपाय तूं सावधानतासे सुन-तुम दोनों श्रीसिद्धचक्रजोका आराधन करो, उन्होंने सहर्ष स्वीकारा और मुनि / महाराजको बताई हुइ विधिपूर्वक नवपद महाराजका आराधन किया, उद्यापन (उजमना ) के | समय आठ सखियोंने सिद्धचक्र आराधन की अनुमोदनाकी, सातसो अंग रक्षकरूप सुजटोने धर्मकार्यकी प्रशंसा की-एक वख्त श्रीकान्तभूपालने सातसो पुरुषोंको साथलेकर सिंहसेन राजाका एक गाम लूट लिया, वे सर्वधन-धान्य-गाय-भैंस वगेरा लेकर वापिस फिरे इतने में सिंहसेन राजाको खबर पड़नेसे अपनी सेनाको लेकर उनपर धावा किया, आपुसमें संग्राम जामा, सिंह | राजाने उन सातसो सुनटोंको एकही साथ मारडाले; अजितसेन राजर्षि कहने लगे-हे नृपते! AKG674% 56 DINC.Gunratnasuri M.S. jun Gun Aaradhat

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