Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 175
________________ हा पूर्वजवके फल तुझको यहांपर इस तरह मिलेःMail वे सातसो नर मरकर तमाम क्षत्रीय कुलमें उत्पन्न हुवे, पूर्वभवोमें मुनिराजक मारपीट कि-5 || याथा-कुष्टि कहाथा इससे सब लोग कोड़िये हुवे, धर्मकी प्रशंसा की थी जिससे रोग मुक्त हुवे18/वह श्रीकान्तराजा श्रीपाल! तू स्वयं है और वह श्रीमती रानी तेरी महापट्टरानी मदनसुन्दरी 5 || है-पूर्व नवमें तेरा हित इच्छकर नौपदका तुझसे आराधन कराया था और उसही तरह इस जवमें जी कराया-हे राजन् ! पूर्वभवमें तेने मुनिको कुष्टि कहाथा इससे इस भवमें तूं कुष्टि हुवा और श्रीसिद्धचक्रजीके ध्यानसे पुनः रोग मुक्त हुवा, मुनि महाराजको एक वख्त नदिमें गिरा: दिये थे इससे तूं समुद्रमें गिर पड़ा और दया करके उन्हें पोछे बाहर निकाले थे इससेतूंनी शान्तिसे - बाहर निकल गया, किसी एक साधु माहात्माको तूंने डूंम कहाथा इससे तू डूंम पनेको प्राप्त हुवा और उन्हें बुलाकर क्षमा मागी थी इससे तेरा इंमत्व नाश हुवा, श्री नवपद महाराजके HEHRA+C++ + + Gunratnasur 948 Jun Gun Aaradhak

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