________________ PS श्रीपाल कौतुकके लिये दोनों हाथोंसे मुनिको उठाकर नदीमें फेंक दिये, इस समय मुनिराजको आकुल-15 8 व्याकुल देखकर नृपतिको करुणा रस उत्पन्न हुवा कि शीघ्रही जलसे निकालकर बाहर पृथ्वीपर | रख्खे; ये सब हकीकत रात्री में अपनी वलभाको कही, सुनकर रानीको बड़ा खेद हुवा तब कहने || 5/ लगी-हे नाथ! जिस किसीको जी दुःख नहीं दिया जासकता तो साधु महात्माको दुःख देनेसे हैं। तो अवश्य घोर नरक मिलती है दूसरा मुनिकी हीलना करनेसे हानि होती है, निन्दा करनेसे || वेरा-मुख रोगी तथा नेत्र रोगी होता है, ताड़ना तर्जुना करनेसे राज्यका नाश तथा मरण होता है| है और मुनिराजको उपसर्ग करनेसे जीव अनन्त संसारी बनता है, अर्थात् बोध बीजको प्राप्त है। नहीं होता; यदुक्तम्..... .. ... ... ... (गाथा.):... ........... ........ . . . वेश्यदबविणासे / रिसिपाए पम्वषणस्स हाहे // संजानउत्थम / मूलागी योहिलामसः॥१॥: . SASKARIBUCH ENARAK Ac.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhal