________________ भोपाल- प्रस्ताव परित्र // 82 // SRAJSAAAAAA-. क्षत्रियोंका आचार नहीं है-हे नाथ! मृग-सावर-सुकर कोरा पशु जाति तथा तीतर-कबूतर| पोपट वगेरा पक्षियोंको मारना आपका कर्म नहीं है, यह तो चांडालका कर्म है, आपतो नीति वान् हैं, जो लोग परप्राणको नाशकर अपनी पुष्टि करते हैं वे. थोड़ेही दिवसोंमें अपनी आत्माका || | नाश करते हैं, इस प्रकार रानी उपदेश देती हुई कहने लगी-... : (श्लोक)........... वैरिणोऽपि विमुच्यन्ते / माणान्ते तृणभक्षणात् // तृणाहाराः सदैवैते / हन्यते पशवः कथम् // 1 // नावार्थः-मारनेके समयपर जो वैरी तृण लक्षण करे यानी मुहमें घास लेले तो वह छोड़ || दिया जाता है तो जो प्राणी सदा घास खाते हैं उनको कैसे मारे जांय ? || . : शीकारमें आसक्त राजा उस वख्त तो कबूल करलेता है कि मैं अबसे न मारूंगा, मगर जब बहार जाता है.तब उसही तरह मारने लगता हैं, किसी एक वरूत सातसो पराकमी सुभ बबाल LAC.Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhal