Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 169
________________ 5 नीच कर्मके हेतु मैं डूमपने प्राप्त हुवा और किस पवित्र कर्मके पसाय में सर्वतः आनन्दित हुवा? हे जगवन् ! मेरा कर्म स्वरूप सब कथन करियेगा; इस वीनतिको लक्षमें लेकर परमोपकारी मुनि 15] महाराज वदने लगे-हे नरश्रेष्ठ! इस संसारके अन्दर जीव पूर्वकृत कोंके अधीन होकर सुख 15|| दुःखका अनुजव करता है तो अब तुम अपना पूर्वभव ध्यानपूर्वक सुनोः इस जरतक्षेत्रके अन्दर हिरण्यपुर नगरमें श्रीकान्त नामका राजा राज्य करता था; वह || बड़ा भारी शीकारी और कठोर हृदयी था उसकी एक जिनधर्म निपुणा, विशुद्ध शील युक्ता, कृपा-शान्ति-वैराग्य-आस्ता करके सहिता श्रीमती नामकी रानी पूर्णतः पतिभक्ता थी, वह धर्मणी 6) रानी हमेंशां अपने पतिराजको उपदेश करती-हे स्वामिन् ! महावुःखका दातार नरकका कारण- 14 भूत इस जीव वषरूप व्यसनको जलांजली देदेवा चाहिये, घोड़ेपर सवार होकर तृण-जलपर -निर्वाह करनेकाले निरपराधी जीवोंको तीक्षण पापोंसे असीम दुःख देकर हर्षित होतेहो, यह GASCOGGESKAKKU Ac. Gunrainasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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