________________ प्रस्ताव पर, 80 // श्रीपाल-|| श्रवण, तत्वरुचि, तत्वबोधादि प्राप्त होना उत्तरोत्तर दुर्लभ है, देखो! जगतमें ये दस तत्व प्रसि / छ हैं:-१ क्षान्ति-क्रोधका अभाव 2 मार्दव-मानका अभाव ३आर्जव-मायाका अनाव 4 मुक्ति* लोभका अनाव 5 तप-इच्छाका निरोध 6 दया-जीव रक्षा 7 सत्य-पाप रहित वचन 8 शौच है। -चित्तकी निर्मलता 9 ब्रह्म-अठार प्रकारका मैथुन यानी औदारिक और वैक्रिय शरीर सम्बधि है। | स्त्री संसर्गका तीन करण, तीन योगसे त्याग 10 आकिंचन-परिग्रह यानी मूर्छाका त्याग. [5] इस प्रकार कल्पवृक्षके समान यह धर्म सम्पूर्ण सुखको देनेवाला है-अहो महानुभावों! | जिनेन्द्र नगवानने दो प्रकारका धर्म फरमाया है, एक साधु धर्म दूसरा श्रावक धर्म; साधु धर्मके 5 मुख्यतः दस अङ्ग हैं जो ऊपर बता चूकें हैं और श्रावक धर्मके मुख्यतः बारह नेद हैं: सुदेव-सुगुरु और सुधर्मके ऊपर अटल श्रझारूप समकित व्रतके पश्चात् बारह व्रत लिये जाते हैं SEARNAKSHARA SAA H Ac.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradha