Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

View full book text
Previous | Next

Page 162
________________ CHICA बीपाक परित्र. 78 // CHOCHOSHUGHUISKUSIC * होगी! इस प्रकार गमगिनी करते हुवे नाना विध पश्चाताप करने लगे, अखीर इस निश्चय पर ||7| आये कि इस वख्त पापको विध्वंस करनेके लिये पारमेश्वरी दीक्षाही एक उत्तम उपाय है, & इस समय अनन्य भावोंसे पश्चाताप करके कितने ही पाप-पटलोंको धोडाले और स्वयं दीक्षा ग्रहण की, शासन देवीने यतिलिङ्ग ( साधु-वेष ) अर्पण किया, महाराज श्रीपालने संयम स्व| रूप देखकर सपरिवार नमन किया और इस प्रकार स्तुति करने लगे-हे महामुने! आपने || क्षमारूप खडसे क्रोधरूप सुजटको जिता, मृदुतारूप वज्रसे मानरूप पर्वतका चकचूर किया, | सरलता रूप अंकुशसे माया रूप विष-वेलको जड़मूलसे उखेड दी, और मुक्ति ( त्याग) रूप नौकासे लोन रूप गहन सागरको तिरगये; अतः आपको पुनः 2 नमस्कार हो, तप, संयम सत्य, शौच, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह धर्मके धारक हे प्रनो! आपको अनेकशः वंदन हो-अब | श्रीअजितसेन राजर्षि वहांसे अन्यत्र विहार कर गये-अजितसेन राजाके स्थानपर महाराजने उनके पुत्रको स्थापन किया. Ac.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak

Loading...

Page Navigation
1 ... 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198