Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 158
________________ AAAAAAAAAG गया, परस्पर जय-स्तंज देखने लगे, सुभट लोगोंने शस्त्र-पूजा की, जाटलोग वीरोंकी विरुदा| वलि बोलने लगे, योद्धाओंने लाल-चन्दन अपने शरीरपर लगाया; अश्व हेंषारव करने लगे, गज गर्जित शब्दसे गर्जने लगे, रथ चीतकार शब्द गुंजाने लगे, उलट सुन्जट लोग मारे हर्षके | नाचने लगे, रण-नेरी चूंजाट शब्द करने लगी, इस तरह रण-क्षेत्रमें कल-कलाट शब्द होने || | लगा सुभट लोग अपनी जयके खातिर दीन-हीनको दान देने लगे, वीरोंने वीर-वलय जुजाओं | पर धारण की-इस वख्त को सुजटकी माता अपने पुत्रकों कहती है-अहो! मेरी कुक्षि मत || | लजाना, स्वामीके कार्यके लिये वैरीके टुकड़े 2 करके वापिस आना; किसीकी जननी बोलती है| | -मैं वीर-पुत्री और वीर-पत्नि हूँ, अहो सुत! तूं जी इसह) प्रकार वीर होना; किसीकी पत्नि अपने पतिको कथती है युद्धमें मुझे याद न करना वर्ना-मूर्छित होजाओगे; किसीकी ललना | वदती है: यदि तुम मेरे कटाक्ष बाणों के सामने नहीं ठहर सकते हो तो युद्धन करना चाहिये; इस प्रकार वीरोंकी माताओं और स्त्रियों शिक्षा दे दे कर अपने अपने मकानपर वापिस चली गई. WSPACHOSHIHIHIRIS RE Ac. Gunrainasun M.S. Jun Gun Aaradhak

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