Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 156
________________ प्रस्ताव चौथा. || साम-दाम-नेद-दंड (शान्ति-लालच-फूटफाट-युज) इन नीतियोंकी आचरणा करनी चाहीये, ||3|| इस लिये सबसे पहिले वहांपर दूत नेजना उचित है-आमात्यजीने सादर स्वीकारा, तब समझा॥ 75 // || बुझाकर एक चतुर्मुख ( चारों तर्फ बोलने में कुशल ) दूतको चंपा नगरी नेजा, उसने जाकर || अजितसेनको इस प्रकार कहा-हे राजन् ! श्रीपाल महाराजा पहिले तो बालक थे, राज्य भार | धारण करनेमें समर्थ नहीं थे अतः आपने राज्य लेलिया तो कुछ हर्ज नहीं, अब आप उनका | राज्य वापिस लौटा दें, जिससे आपको सब तरह शान्ति रहेगी अन्यथा आपका कुल नाश हो / जायगा, आपके और श्रीपालनरेश्वरके बीच कोश् अन्तर नहीं है, इस वख्त उनके पास अगण्य क सेना है उसके बल पर वे अपना राज्य अवश्य लेंगे, श्रीपालजी तीनखंडके भोक्ता महाराजा | हैं, तमाम राजा उनकी सेवा करते हैं इस ही तरह आप नी सेवाके लिये चलियेगा-दूतके || नरम-गरम शब्द सुनकर क्रोधसे धम-धमान्त अजितसेन इस प्रकार बोला-हे दूत! तुं अवध्य I है (मारने योग्य नहीं है ) इस लिये में तेरेको जीता छोड़ता हूँ, अहो चतुर्मुखि! तेरा स्वामी PARSAATRAIGHALCAUSA - // 75 / / % AST HIAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak

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