________________ श्रीपाल परित्र R64 // प्रातःकालमें हारके प्रभावसे गगन-मार्गद्वारा शृंगार सुन्दरीके मकानपर जा पहुँचे, वहां M पर स्थित सिंहासनपर जाकर बैठ गये-पांचों सखियों सहित राज-कन्या श्रीपालजीका रूप देखकर इर्षित हुई और विचारने लगी कि यदि यह महा-पुरुष हमारी समस्या पूरदे तो हम धन्या हैं-कृत पुण्या हैं-इतनेमें कुमार बोले, अहो तुमारे समस्यापद सब प्रकाशित करो! तब || राज-कन्याकी प्रेरणासे सब सखियें क्रमशः इस प्रकार पूछने लगी:____पंडिता बोली-" वाँच्छाफलं चित्तगतं भवेच्च " यानी चित्तमें रहा हुवा वाँच्छित फल किससे प्राप्त होता है ? कुंवरने सुनकर विचारा कि राज कुंवरीने अपने मुखसे सम्यस्यापद नहीं कहा तो मुझे भी अन्यके मुखसे पूर्ति कराना चाहिये; तब पासमें रहे हुवे स्तम्भपर विराजित कठ-पुत्तलीके शिरपर हाथ रख्खा कि शीघ्रही वह उत्तर देने लगी:-: SUGARCACA-ARASHRECASA-AM CO-CA-%AECAबककवल Gunatnasun Jun Gun Aaradhak