________________ श्रीपाल-5 काममें प्रीति है, जिनमन्दिर वगेरामें नहीं; अतः तुमको जाना हो तो जाओ; तब श्रीपालजी प्रस्ताव चरित्र. 18 परिवार सहित प्रभु-मन्दिर पर आये, देखते क्या हैं कि एक मोटा मेला लग रहा है, अश्वरत्न || तीसरा. // 42 // पर बैठे हुवे कुमारने कहा-भाईयों! तुम लोग अपने 2 भाग्यकी परीक्षाके लिये किंवाडोंको हाथोंसे स्पर्श करो, सबने जबाव दिया कि सूर्य विना कमलवन कौन प्रतित कर सकता है? | अर्थात् आप समर्थ विना कौन खोल सकता है, इतना कह कर श्रीपालजीकी आज्ञाका आदर है। करने के लिये सबने करसे कपाटोंको स्पर्श किया मगर कुछ भी न हुवा; अब श्रीपालजी अश्वरत्नसे नीचे उतरे और उत्तरासण डालकर निस्सही शब्द ( अन्य कार्योंका निषेधवाचक शब्द ) कहते हुवे भक्तिपूर्वक रंगमंडपमें प्रवेश हुवे, वहांपर मूल मन्दिर (मूल गंभारा) के पास आकर सर्वार्थ सिद्धि कर्त्ता नवपद महाराजका ध्यान किया कि तत्काल भड़ाकेसे दोनो किंवाड एकदम खुल पडे, इस समय कुंवरने केसर-चन्दनादिसे तथा खिले हुवे पुष्पोंकी मालासे प्रभु पूजा की, फलादि चड़ाकर विधिपूर्वक चैत्यवंदन. किया; इस वख्त वहांपर कुमारिका सहित RISALIERICKOU 93439 . AC.GunratnasuriM.S. . Jun Gun Aaradhak