________________ और अवसरपर यह भी कहा कि तुमको कोइ राज-कार्य करनेकी इच्छा हो तो ग्रहण करो! तब ||3|| | कुंवरने अन्दरखाने ऊंडा 2 विचार कर महिमानोंको ताम्बूलदान देनेका काम हाथमें लिया, हूँ | अब श्रीपाल कुमार राजाके दिये हुवे महलमें अपनी प्रियतमाके साथ विषय सुख भोगवते हुवे है। | आनन्दपूर्वक रहने लगे-इस सम्बद्धको यहींपर छोड़ कर श्रीपालजी अब समुद्रमें गिरपड़े उसके है समय जहाजोंमें क्या 2 बनाव बने उसका आख्यान करते हैं: . श्रीपाल कुंवरके समुद्रमें गिरते ही दुष्ट-पापीष्ट-धृष्ट-धूर्त धवल अपना शीर फोड़ने लगा, || छाती कूटने लगा और चिल्ला 2 कर रुदन करता हुवा कहने लगा-हाय ! मेरे स्वामी श्रीपाल || नरोत्तम सागरमें गिरपड़े; यह सुन सब जहाजोंमें कोलाहल मच गया, दोनो स्त्रियोंने वज्रपातके || | समान पति-पतनके हाल सुनकर महा विलापात करने लगीं, वे ललनाएं हाहा-रव करती हुई है। मूर्छित होकर पोत-पटपर गिर पड़ी, तब दासियोंने शीतल जल सींचनकर पुनः सचेत की, | Ac.Gunratnasun M.S.... Jun Gun Aaradha