________________ है ऊठतेही कुंडलपुर जानेका इरादा हुवा, तब हारके प्रत्नावसे आकाश मार्ग-द्वारा वामन ( बाव निया) रूप करके नगरमें प्रवेश किया और अभ्यासशालामें पहुँचा, जहां अनेक राज-कुंवर वीणा अभ्यास कर रहे हैं, जाकर पाठकसे मुलाकात की और उसे निवेदन किया-अहो अध्या पक! मुझे पढाओ, यह सुन सब राजपुत्र खड़ 2 शब्दसे इसने लगे और यह पूछने लगे-अहो / 18 वामन ! वीणाभ्याससे तुम्हें क्या मतलब है? जबाव मिला कि तुम लोगोंको भला क्या जरू | रत है? उन्होने कहा राजकन्याके साथ शादी करना है, उसने कहा बस मुझे भी विवाह करना | है है! तब सब लोग उदरको पकड़ 1 कर खूब हसने लगे और परस्पर कहने लगे-अहा! इसको भी 8 | लग्नकी आशा है; यह सुन वामनराज बोले-अरे! तुमारे नज़रो नज़र मैं परणुं गा और तुम सब |ज्यों के त्यों रहजाओगे-तबही मेरा नाम वामन समझना, इस वख्त वामनने खड्ग-रत्न पाठकको भेट किया, बस तुरन्त ही अध्यापकने अपनी वीणा. उसे शीखनेको दे दी; सच है! "सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयन्ति" यानी तमाम गुण पैसेमें रहे हुवे हैं-वामनने हाथमें वीणा || SHREASEARSAHASREE R AC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak