________________ प्रस्ताव चरित्र 159 // श्रीपाल- लेकर उसकी तांत तौड़ डाली, तुंबी फोड़ डाली, कीलिये फेंकदी और दण्डके टुकड़े 2 कर डाले, इस प्रकार क्रीड़ा करके राज कुमारों को हास्य उत्पन्न कराता है, वे कुमार भी पेट फुला 2 कर हसते हैं; इस प्रकार रमत-गमतमें सुखपूर्वक दिन बीतते थे, दान बलसे वामनने पाठकको है। | वशीभूत कर लिया था. - एक दिन राज कन्याने समस्त छात्रोंको परीक्षाके लिये बुलाये, उस वख्त वामन भी मंड-8 पके अन्दर जाने लगा, मगर कुरूपी और हलका समझ कर पहरेदारने उसे रोका, तुरन्त ही 5 उसने उसे रत्न-कुंडल देकर अन्दर प्रवेश किया " हाथ पोला तो जगत गोला” यह दाखला है। यहां पर चरितार्थ हुवा, इस समय राज कुंवरी श्रीपालजीको दिव्य मूल रूपमें देख रही है, तब कुमारिका हृदयमें विचारने लगी कि यदि मेरे सद्भाग्य हों तो यह मेरी प्रतिज्ञा पूरे गा, है // 59 सब लोक इसे वामन कहते हैं और मैं तो एक भास्वर सुन्दराकार नररत्न देख रही हूँ, अस्तु है। PEGASUGUST HOCAKHIRAIRPORARISHIRIGIRIAIS Ac, Gunmatrnasuri M.S.. Jun Gun Aaradhak