________________ श्रीपाल चरित्र, | हो सकता है, ऐसा सोचकर उनके ध्यानमें लयलीन हो रहे, तब श्रीसिद्धचक्र महाराजका सेवक सौधर्म देवलोकमें रहने वाला विमलेश्वर देव हाथमें हार लेकर एकदम प्रकट हुवा 18 और कुमारको कहने लगाः // 58 // ... (श्लोक) -CA4%AECAववव | इच्छाकृतियॊमगतिः कलासु / मौढिर्जयः सर्वविषापहारः // कण्ठस्थिते यत्र भवत्यवश्यं / कुमार हारं तममुं गृहाण // 1 // भावार्थ:--हे कुमार! लेआ तुम इस हारको ग्रहण करो? यह हार जिसके कण्ठमें रहा | हुवा होगा उसको इच्छित आकृति, आकाश गमन, कला कुशलता, विजयता, सर्व विषयोंका | हरण आदि अवश्य सिद्ध होंगे. इस प्रकार हारके गुण कहकर विमलेश देवने कुमारके कण्ठमें हार पहनाया, बाद अपने है। निज स्थानपर वापिस चला गया, कुंवर हारको प्राप्त कर निश्चिन्त हो शान्तिसे सो गया-सुबह G Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak