________________ SSINESSHOSHOSIS. HIS | पना स्वरूप अपने मुखसे कहना उचित नहीं है, इतनेहीमें आकाशसे चारण-मुनिका सहसा | 6 पधारना हुवा बस सब लोग एकदम उठ खड़े हुवे, मुनिवर्य जिन मन्दिरमें गये और प्रजुको है। * वंदन कर बाहर प्रदेशमें ठहरे तब तुरन्तही राजा वगेराओंने गुरु वर्यको वंदन-नमस्कार किया है। | और अपने 2 उचित स्थानपर बैठ गये, अवसरको पाकर मुनिराजने धर्म-देशना प्रारंभ की:__अहो भव्यात्माओं! पवित्र जिन धर्मके अन्दर तीन तत्व फरमाये हैं:-१ देव तत्व 5 गुरु है। | तत्व 3 धर्म तत्व; इनके नव भेद इस प्रकार बन जाते हैं-देव तत्व के दो नेद-१ अरिहन्तपद है || 2 सिद्धपद+गुरु तत्वके तीन जेद-१ आचार्यपद 2 उपाध्याय पद 3 साधु पद+धर्म तत्वके चार नेद-१ दर्शन पद 2 ज्ञान पद 3 चारित्र पद 4 तप पदइन नव पदोंसे सिद्धचक्र महापद | || बनता है-इस सिद्धचक्रका ध्यान राज्य लक्ष्मी-तीन लोकका पूज्यपद-सुख समृद्धि कुष्टादिरोग | विनाशता-नेत्र ज्योति आदि गुणोंको देनेवाला है; इतनाही नहीं किन्तु यावत् परम पद Cell Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak