________________ फ . . - - प्रस्ताव भोपाल-||5|ही लाखके बरोबर हूँ, तुम श्रीपालके साथ परम प्रीतिकर विश्वास पैदा करो? यह सन धवल चरित्र. बड़ा प्रसन्न होकर बोला-अहो! तू ही मेरा परम मित्र-परम वल्लभ है, तूं ही काम सिक क- |5|| तीसरा.. रनेवाला है, तेरेको मनोवांच्छित फल दूंगा; कुंवरको मारने का उपाय विचार! यह सुन वह | दुष्ट पुनः बोला-अहो सेठ! जहाज पर एक उंची मांचड़ी बंधाओ उसपर कुतुहल देखनेके | बाहने श्रीपालको बुलाना और तुम नीचे आजाना तब शीघही में मंचीकी डोरी काट डालूंगा बस अपना कार्य सिद्ध हो जायगा-" इसही का नाम रौद्र ध्यान-ऐसे उष्ट कामोंसे ही जीव | घोर नरकको पाता है " यह गुप्त मंत्र कह कर वह मित्र गया, इधर कुमारके साथ सेठ अ. | पूर्व प्रीति करने लगा, यह तो बड़े भद्रिक हैं इसलिये ठीक धवलके कहनेमें लग गये, श्रीपा लको सेठका विश्वास उत्पन्न हुवा-सेठके साथ भोजन-पुष्प-ताम्बूल-विलेपन-गीत-नृत्य कुतुहल |||| कथा-कथन आदि व्यवहार करने लगे और समुद्रके कोतुक देखते हुवे सेठको अपना परम | | मित्र मानने लगे; सत्य है! सज्जन सजनताको कभी नहीं छोड़ता, तब धवलने एक उंची मांचड़ी। AMAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhat! -5