________________ श्रीपालचरित्र. RAGANAGAR मयणाका सब वृतान्त कह सुनाया, महाराजा सुनते ही प्रसन्न होकर शीघ्रही पुण्यपालके साथ ||5|| प्रस्ताव मदनाके निवास भुवनमें गये, मयणासुन्दरी सहित श्रीपाल कुमारने वंदनादिपूर्वक राजाका स- दूसरा. |म्मान किया; इस वख्त प्रजापाल लज्जातुर होकर बोला-हे वत्से! तूं धन्या है-कृतपुण्या है-विवेकिनी है। | और तत्वज्ञा है, जो कुछ तेने कहा सो सत्य हुवा, इत्यादि प्रशंसा की 'यथा राजा तथा प्रजा' PI के नियमसे सब लोगोंने महति महिमा की. पुनः राजा बोला-हे पुत्री ! तुने मेरे कुलको उद्धृत किया, तेरी माताकी रत्नकुक्षि उज्ज्व 5. ल हुई तथा जिन धर्म द्योतित हुवा, हे मदने! मैने तुझको दुःख दिया उसकी क्षमा करना, तब मयणा बोली-हे तात! आप खेद न करे कोंकी गति विचित्र है, मुझे लेश मात्र भी चिन्ता , नहीं, जीवने जैसा संचय किया हो वैसा ही पाता है इसलिये प्राणी मात्रको चाहिये कि गर्व न करे! मैंही कर्ता हूँ, एसा कहना योग्य नहीं-हे. पिताजी ! जो कुछ हुवा सो हुवा अब आप HRANOURIS SUCH // 27 S AC.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhal