________________ श्रीपाल चरित्र. प्रस्ताव तीसरा. // 40 // रंगमण्डपसे बहारके मण्डपमें आया तब राजकन्या भी मूल मन्दिरके पीछले दरवाजेसे निकलकर / रंगमण्डपमें आई, इतनेमें मूल मन्दिरके दोनो कपाट एकदम बंध हो गये; हे सत्पुरुष! यह है आश्चर्य जनक घटना हुई-इस वख्त सब लोगोंने और राजाने मिलकर बहुतेरे उपाय किये किन्तु / किंवाड़ नहीं खुलसके, कुंवरी बड़ा पश्चाताप करने लगी कि मुझसे कोइ मोटी आशातना बन गई है जिससे यह अघटित घटना बनी; इस तरह विचारती हुई दूःखपूर्वक रुदन करने लगी। इतनेमें राजा बोला-हे कन्ये! तूने कोश् आशातना नहीं की आज़ मैनेही अनुचित किया है। कि जिनेश्वरकी मनोरञ्जन अंगरचना देखकर शून्य भावसे वहीं पर तेरे लिये वरकी चिन्ता की 8 इससे कपाट बंद हो गये, मालुम होता है कि शासन-देव कुपित हो गये; अत एव सबके प्रजु | दर्शनमें अन्तराय पड़ी-अब कन्या सहित राजा कपूर, केशर, चंदन, कस्तुरी, बरासादिका बलिदान करके दशांगी धूपसे सारा जिननुवन सुगंधित किया और परिवार सहित अहम तप करके || वहांपर रहे हुवे हैं; सामन्त, शेठ, सेनापति, प्रजा, प्रधान मंडलादि सब इकठे हुवे हैं, कितनेक Vil Accuratasun Jun Gun Aaradh RECAR