________________ SOSTES श्रीपाल परित्र. प्रस्ताव (गाथा) तीसरा. गेहागयं च शरणा-गयं बद्धं च रोगपरिभूयं / / // 37 // नस्संत बूढ बालयं / न हणंति सयणा पुरिसा // 1 // भावार्थः-सजन पुरुष घर पर आये हुवेको, शरणागतको, बंधनसे बंधे हुवेको, रोगसे कायल हुवेको, पीठ देकर भगते हुवेको, वृद्धको और बालकको कभी नहीं मारते. श्रीपाल कुमारका विजय होनेके बाद सेठके सब सुभट उसके पास आये मगर धवलने || P गुस्से होकर उनको न रख्खा, तब दयालु श्रीपालने उसही वेतनसे उन सबको नोकर रख लिये और अपनी जहाज़ोंमें रक्षाके लिये स्थापन कर दिये, वे सब लोग अब कुमारके सेवक बन गये, | इस वख्त श्रीपालने महाकाल राजाके बंधन दूर किये और उसे जहाजोंका कर देकर वस्त्रादि / नेटके साथ विसर्जन किया-इस समय बब्बराधीशने श्रीपाल कुंवरको प्रार्थनाकी कि हे महा AAAAAAAAKASA-KALA S O SIS199420 // 37 Jun Gun Aaradhak Wil Ac. Gunratnasuri M.S.