________________ | चन्द्र महाराजको वंदन कर अपने उचित स्थान पर बैठ गये-मुनिश्वरने धर्मोपदेश प्रारम्भ किया: (श्लोक) धर्मात्सुखं दुःख क्षयं हि याति / धर्मेण राज्यं सुकुलोद्भवःस्यात् // धर्मस्य सेवा सफला सदैव / धर्मे प्रयत्नो मनुजैविधेयः॥१॥ भावार्थः-धर्मसे सुखकी प्राप्ति और दुःखका नाश होता है तथा धर्मसे राज्य वैभव मिलता है और सत् कुलमें उत्पत्ति होती है, धर्मकी सेवा सदैव सफल होती है; अतः अहो महा|नुभावों! मनुष्य लोगोंको धर्मकी सम्पूर्ण सेवा करनेमें यत्न करना चाहिये. इत्यादि धर्मदेशना सुनकर सब लोग अपने 2 स्थानपर चले गये किन्तु कितनेक श्रद्धालु श्रावक वहीं पर बैठे हुवे हैं, इस वख्त मुनि महाराजने पूर्व परिचिता मदनाको पूछा-हे मदने! SOCARIOCASSASSUOLOGY Ac. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradha