________________ चरित्र श्रीपाल-15 योजा नाशको प्राप्त हुवे, अखिल जगतमें कर्त्ता तो एक दैव ( कर्म ) ही है अन्य कोई नहीं, || प्रस्ताव ये सर्वज्ञ प्रणीत वचन मेरे मनोमन्दिरमें विलास कर रहे हैं, मुझे अवसर पर जो वर मिल पहिला. // 6 // जायगा उसे सहर्ष स्वीकार लूंगी-इस प्रकारका कथन सुन राजाने दिलमें समझ लिया कि (स्व * गत ) " यह कन्या कर्मवादमें दृढ़चित्ता है, सभामें इसने मेरी हिलना की, दुष्ट पाठकने सभा रंजन की कला नहीं शिखलाई, यह बाला बडी मंदमती है इत्यादि " आगे चलकर मदनसु. न्दरी फिर कहने लगी:-हे पिताजी! मा-बाप जिस कन्याको सुखी कुलमें देते हैं वह दुःखी / और जिसे दुःखी कुलमें देते हैं वह सुखी क्यों कर नज़र आती हैं ? तो मानना होगा कि यहां पर कर्म ही कारण है और कोई नहीं; इस तरह राजा और मदन सुन्दरीके परस्पर महा विवाद हुवा... ... इस समय अवसरज्ञ सुबुद्धि मन्त्रीने नृपतिको धमधमान्त क्रोधातुर जानकर विज्ञप्ति की ARRUKHABAR Ac, Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhall य