________________ प्रस्ताव पहिला. श्रीपाल है, सर्वज्ञ प्रभुके ये आप्त वचन मेरे हृदयमें रम रहे हैं; अतः मैं हरगीज़ अपने मुखसे यह न चरित्र | कहूँगी कि मुझे अमुक वर कर दो, जिस जीवके साथ सम्बंध होगा उसके साथ अवसर आये स्वतः हो जाय गा-हे पिताजी! आपको यह राज्य वैभव वगेरा किसने दिया? तो कहना होगा। कि शुभ कर्मने ही; क्योंकि महान् पुरुषोंका यह कथन है कि " सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता" यानी सुख दुःख का कोई देने वाला नहीं है, अर्थात् सिर्फ कर्मही दाता है, यह शास्त्र | वचन आप दीर्घ दृष्टिसे विचारिये गा-यहां पर कन्याने “कर्मवाद" प्रकट किया. कन्याके इन भारी जोशीले शब्दोंको सुन कर राजा कोपातुर हुवा " इस दुष्टाको भारी 2] दुःखमें गेर देना चाहिये " ऐसा विचार कर बोला-हे कन्ये! बताओ! कि तुम किसकी कृपासे || सुख, भोजन, राज्य, सम्यग् आभूषण, वस्त्र, ताम्बूल, गृहक्रीडादि आनन्द लूंटती हो ? क्या तुझे मालुम नहीं है कि ये सब मेरे ही आधीन हैं ! मेरे राज्यके होनेसे तुझे सुख और न होनेसे , BOSSARASHTRAKAR CAR DIPAC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradili