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१२४
-८१ श० ३१ उ० २८ ८२ श. ३२ उ० २८ श० ३३ उ० श० ३४ उ० १२४, श० ३५ उ० १३२ श० ३६ उ० १३२ ३७ उ० १३२ १३२ १३२ २३१ ११६ |
श०
श० ३८ उ० श० ३९ उ० श० ४० उ० श० ४१ उ०
८३
८४
८५
८६
८७
८८
८९
९०
९१
१२
खुलक जुम्मा
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एकेन्द्रिय जुम्मा श्रेणी सतक एकेन्द्रिय महा जुम्मा बेरिन्द्रिय तेरिन्द्रिय चौरिन्द्रिय असंक्षीपंचेन्द्रिय,,
संज्ञी रासी जुम्मा
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525
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आपका,
मेघराज मुनोत. फलोदी ( मारवाड ).
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२४
२४
२४
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ર૪
अबी तक श्री भगवतीजी सूत्र का विषय लिखना बाकी रह गया है वह जैसे जैसे प्रकाशित होगा वैसे वैसे इस अनुक्रमणिका को साथमें मीला दीया जावेगा ताके सब साधारण को सुविधा रहै.
अन्तमें हम नम्रतापूर्वक यह निवेदन करना चाहते है कि छद्मस्थों में त्रूटीये रहने का स्वाभावीक नियम है तदानुसार अगर प्रेस कोपी करते या प्रुफ सुधारते समय दृष्टिदोष या मतिदोष रह गया हो तो आप सज्जन उसे सुधार के पढे और ऑफीस में • सूचना करेंगे तो हम सहर्ष उपकार के साथ स्वीकार कर अन्या - -वृत्ति में उसे सुधार देगें. इति अस्तु कल्याणमस्तु । शान्ति ३.