Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२, १, १.]
बंधगसंतपरूवणाए णिदेसपरूवणं एदीए परूवणाए ण किंचि फलं पेच्छामो ? ण, मग्गणहाणेसु चोदसगुणहाणाणं संतादिपरूवणादो मग्गणट्ठाणविसेसिदजीवपरूवणाए एगत्ताणुवलंभादो । जदि तत्ता एयत्तमत्थि तो अवगम्मदे, ण च एयत्तं पेच्छामो । एदेण कमेण द्विददव्यादिअणियोगद्दाराणि घेत्तूण जीवट्ठाणं कयमिदि जाणावणहूँ वा बंधयाणं परूवणा आगदा । तम्हा बंधयाणं परूवणं णायपत्तमिदि।
___णामबंधया ठवणबंधया दव्यबंधया भावबंधया चेदि चउबिहा बंधया। तत्थ णामबंधया णाम 'बंधया' इदि सद्दो जीवाजीवादिअट्ठभंगेसु पयट्टतो। एसो णामणिक्खेवो दवट्ठियणयमवलंबिय द्विदो । कुदो ? णामस्स सामण्णे पउत्तिदसणादो, दिट्ठाणंतरसमए णट्ठदव्येसु संकेयगहणाणुववत्तीदो। कट्ट-पोत्त-लेप्पकम्मादिसु सब्भावासम्भावभेएण जे ठविदा बंधया त्ति ते ठवणबंधया णाम । एसो णिक्खेवो दव्यट्ठियणयमवलंबिय विदो । कुदो ? 'सो एसो' त्ति एयत्तज्झवसाएण विणा ढवणाए अणुक्वत्तीदो। जे ते दव्यबंधया
जानेवाले अर्थका ज्ञान हो जाता है, अतः इस प्ररूपणाका हमें तो किंचित् भी फल दिखाई नहीं देता?
समाधान-ऐसा नहीं है, क्योंकि मार्गणास्थानोंमें चौदह गुणस्थानोंकी सत्, संख्या आदिरूप प्ररूपणासे मार्गणाविशेषित जीवप्ररूपणाका एकत्व नहीं पाया जाता। यदि उससे एकत्व होता तो वैसा हमें ज्ञान हो जाता। किन्तु हमें उनका एकत्व दिखाई नहीं देता?
अथवा, इस क्रमसे स्थित द्रव्यादि अनुयोगद्वारोंको लेकर जीवस्थान खण्डकी रचना की गई है, यह जतलानेके लिये बन्धकोंकी प्ररूपणा प्रस्तुत है। अतरव बन्धकोंकी प्ररूपणा न्यायप्राप्त है ।
बन्धक चार प्रकारके हैं- नामबन्धक, स्थापनाबन्धक, द्रव्यबन्धक और भावबन्धक । उनमें नामबन्धक तो 'बन्धक' यह शब्द ही है जो जीव, अजीव आदि आठ भंगोंमें प्रवृत्त होता है । ( इन आठ भंगोंके लिये देखो जीवस्थान भाग १, पृ. १९)। यह नामनिक्षेप द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करके स्थित है, क्योंकि, नामकी सामान्यमें प्रवृत्ति देखी जाती है, चूंकि दिखाई देनेके अनन्तर समयमें ही नष्ट हुए पदार्थों में संकेत ग्रहण करना नहीं बनता।
____ काष्ठकर्म, पोतकर्म, लेप्यकर्म आदिमें सद्भाव व असद्भावके भेदसे जिनकी 'ये बन्धक हैं' ऐसी स्थापना की गई हो वे स्थापनाबन्धक है । यह निक्षेप भी द्रव्यार्थिक मयके अवलम्बनसे स्थित है, क्योंकि, 'वह यही है ' ऐसे एकत्वका निश्चय किये बिना स्थापनानिक्षेप बन नहीं सकता ।
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