Book Title: Shatkhandagama Pustak 07
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२]
छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, १. बंधणिज्जं बंधविहाणमिदि चत्तारि अधियारा । तेसु बंधगेत्ति विदिओ अधियारो, सो एदेण वयणेण सूचिदो। जे ते महाकम्मपयडिपाहुडम्मि बंधगा णिदिवा तेसिमिमो णिदेसो त्ति वुत्तं होदि।
बंधया णाम जीवा चेव । कुदो' ? अजीवस्स मिच्छत्तादिपच्चएहि चत्तस्स बंधगताणुववत्तीदो। ते च जीवा जीवट्ठाणे चोदसगुणट्ठाणविसिट्ठा चोदसमग्गणट्ठाणेसु संतादिअट्टहि अणियोगद्दारेहि मम्गिदा। संपहि तेसिं जीवाणं संतादिणा अवगदाणं पुणरवि परूवणे कीरमाणे पुणरुत्तदोसो ढुक्कदि ति ? ढुक्कदि पुणरुत्तदोसो जदि तेसिं जीवाणं तेहि चेव गुणट्ठाणेहि विसेसियाणं चोद्दससु मग्गणट्ठाणेसु तेहिं चेव अट्ठहि अणियोगद्दारेहि मग्गणा कीरदे। णवरि एत्थ चोदसगुणट्ठाणविसेसणमवणिय चोदससु मग्गणट्टाणेसु एक्कारसेहि अणियोगद्दारेहि पुव्वुत्तजीवाणं परूवणा कीरदे । तेण पुणरुत्त. दोसो ण ढुक्कदि त्ति।
जीवट्ठाणम्मि कदपरूवणादो चेव एत्थ परूविज्जमाणो अत्थो जेण णव्वदि, तेण
अनुयोगद्वार बन्धनके बंध, बंधक, बंधनीय और बंधविधान, ये चार अधिकार हैं। उनमें जो बन्धक नामका दूसरा अधिकार है वही यहां सूत्रोक्त वचन द्वारा सूचित किया गया है। कहनेका तात्पर्य यह कि जो वे महाकर्मप्रकृतिप्राभृतमें बन्धक कहकर निर्दिष्ट किये गये हैं उन्हींका यहां निर्देश है।
बन्धक जीव ही होते हैं, क्योंकि, मिथ्यात्व आदिक बन्धके कारणोंसे रहित अजीवके बन्धकभावकी उपपत्ति नहीं बनती।
शंका-उन ही बन्धक जीवोंका जीवस्थान खण्डमें चौदह गुणस्थानोंकी विशेषता सहित चौदह मार्गणस्थानों में सत् , संख्या आदि आठ अनुयोगोंके द्वारा अन्वेषण किया गया है। अब सत् आदि प्ररूपणाओं द्वारा जाने हुए उन्हीं जीवोंका फिर प्ररूपण किये जानेसे तो पुनरुक्ति दोष उत्पन्न होता है ?
___ समाधान-पुनरुक्ति दोष प्राप्त होता यदि उन जीवोंका उन्हीं गुणस्थानोंकी विशेषता सहित चौदह मार्गणाओंमें उन्हीं आठ अनुयोगों द्वारा अन्वेषण किया जाता। किन्तु यहां तो चौदह गुणस्थानोंकी विशेषताको छोड़कर चौदह मार्गणास्थानोंमें ग्यारह अनुयोगद्वारोंसे पूर्वोक्त जीवोंकी प्ररूपणा की जा रही है । अतः यहां पुनरुक्ति दोष नहीं प्राप्त होता।
शंका-जीवस्थान खण्डमें जो प्ररूपणा की गई है उसीसे यहां प्ररूपित किये
१ प्रतिषु · कदो' इति पाठः ।
२ प्रतिषु · तेइं' इति पाठः ।
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