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वचन-साहित्य का साहित्यिक परिचय
आदिका नामनिर्देश नहीं किया गया है । क्वचित् अपवादात्मक ऐसा निर्देश मिलता है । कहीं-कहीं वचनकारोंने प्रागमोंको भी श्रुति कहा है। जो उद्धरण नामनिर्देशके साथ पाये हैं उनमें अथर्ववेदके अधिक है । साथ-साथ वचनोंमें कन्नड़ भाषाकी अनेक कहावतें अथवा लोकोक्तियां पायी जाती हैं जो आज भी उसी रूप में प्रचलित हैं। जैसे-'हत्तवु बडिदरे हावु साय बल्लदे ?" १ "सुण्णद कल्लुमडलल्लि कट्टिकोंडु मडुविनल्लि विदंते'२ हावु डोंकादरे बीलु डोंके ?"3 आदि । ऐसी अनेक कहावतें हैं। ये कहावतें आज भी उसी रूपमें जन-भाषामें प्रचलित हैं। करीव पाठ-नौ सौ सालसे अाज तक एक ही रूपमें प्रचलित इन लोकोक्तियों को देखकर पाठककी बुद्धि चकरा जाती है । उन लोकोक्तियोंका इतिहास 'जाननेकी उत्कंठा बढ़ती है इन लोकोक्तियोंकी वास्तविक आयु क्या होगी ? कन्नड़में एक कहावत है 'वेदकिन्त गादेये मेलु ।'४. कहावतकी प्राचीनताके कारण ही उसको यह मान्यता मिली होगी ?
अस्तु, कन्नड़ कहावतोंका कुल-गोत्र खोजना इस लेखकका उद्देश्य नहीं है ।। यहाँ पर इतना ही वताना है कि वचनकारोंने अपने वचनोंमें कहावतोंका पर्याप्त उपयोग किया है। कहावतोंके वाद वचनकारों की शब्द-संपत्तिका भी विचार करना है और उनकी मुद्रिकाका भी। भारतीय संत-साहित्य में साधारणतः यह पाया जाता है कि उनके वचनोंमें उनका अपना नाम होता है, जिससे सुननेवाले अथवा पढ़नेवाले यह समझ सकें यह किसकी वाणी है । उसको छाप भी कहते हैं । दक्षिणमें इसको 'मुद्रिका' कहते हैं । वचनकारोंकी मुद्रिकाका विचार करते समय अधिकतर ऐसा लगता है कि उन्होंने अपने इष्टदेवके नामका ही अधिकतर उपयोग किया है। संभवतः यह वचनकारोंकी दीक्षाका परिचायक है । क्योंकि धनलिंगीके एक वचनमें आया है कि "मेरे गुरु तोटदार्यने मेरा 'धनलिंगी ऐसा नामकरण किया.।" वैसे ही सिद्धरामयाने भी अपने एक वचनमें 'गुरु चन्नबसवद्वारा नामकरण किये हुए लिंगका नामलेता हूँ !' कहा है ।
दूसरे प्रकारकी मुद्रिका वचनकारोंके गुरुके नामकी है। अनंत देवने 'अनंत गुरु अल्लममहाप्रभु' इस मुद्रिकासे अपने वचन कहे हैं, तथा मुक्तायक्काने अपने गुरु 'अजगण्ण' नामकी मुद्रिकाको अपनाया है।
इसके अतिरिक्त कुछ वचनकारोंने अपने नामका ज्यों-का-त्यों उपयोग किया है । जैसे 'विगर चौडैया' प्रसिद्ध है । १. वल्मीक पीटने से क्या सांप मरेगा ? २. चूने का पत्थर गले में बांधकर झील में डूबने सरीखा। ३. सांप टेड़ा हो तो क्या उसका दिल भी टेढ़ा है ? ४. गादे= काहायत, वेदसे गादे ही ऊँची है ! वेद से कहावत श्रेष्ठ है।