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वचन-साहित्य-परिचय
उसकी कथन-पद्धति आदिका विचार करना आवश्यक है । सामान्यतः वचनकारोंकी कथन-पद्धति सूत्रात्मक है, पुराणात्मक नहीं, अर्थात् थोड़ेसे शब्दोंमें अनंत अर्थ समाया हुआ है । वचनोंकी रचनाका उद्देश्य, उनके विषय आदि का विचार करने पर लगता है कि वचनोंका यह सूक्ष्म-सा रूप ही सुन्दर और उपयुक्त है। मनुष्य के अंतरंगमें उद्भूत होनेवाली भावना कल्पना विचार आदिको व्यक्त होनेके लिए, साकार होनेके लिए किसी माध्यमकी आवश्यकता होती है । उस माध्यमके द्वारा ही मनुष्यका भावात्मक अंतरंग मूर्त होकर व्यक्त होता है। तभी किसी मनुष्यकी कल्पनाएं, उसकी भावनाएं, उसके विचार, विकार आदि अन्य लोग समझ सकते हैं । कन्नड़ वचन-साहित्य देवोन्मादमें उन्मत्त हुए कन्नड़ शैवसंतोंके अंतःकरणको रूपाकारमें व्यक्तः करनेवाला दर्पण ही है। अधिकतर वचन सात-आठ वाक्य, अथवा २०-३० शब्दोंके ही हैं। कुछ उससे भी छोटे हैं, तो कुछ दो-दो, तीन-तीन पृष्ठ भर-- देने वाले भी हैं, किंतु ऐसे वचन बहुत कम हैं। जो वचन लंबे-लंबे हैं उनमें वचनगद्यका वैशिष्ट्य नहीं है। उन वचनोंमें सामान्यतः वचनोंमें पाया जानेवाला लालित्य, लोच, अर्थ तथा भाव-गांभीर्य आदि गुण नहीं, प्रसाद गुण नहीं, वह प्रास और ओजस्विता नहीं । वह सामान्य गद्यखंड-से हैं। उन्हें इसलिए वचन कहा जाता है कि वह वचनकारोंने कहे हैं, उसपर उनकी मुद्रिका अंकित है। किंतु उनमें वचनोंका गुण-धर्म नहीं । ऐसे वचन बहुत ही कम हैं।
__ अपवादको, अर्थात् अत्यंत छोटे और अत्यन्त बड़े वचनोंको छोड़दें तो सामान्यतः सब वचन २०-३० शब्दोंके हैं। इनमेंसे कई अलग-अलग रागोंमें सुंदरताके साथ गाये जाते हैं। कुछ आलोचकोंका यह कहना है कि गाये जाने वाले वचन, वचन नहीं हैं भले ही उनको वचनकारोंने कहा हो। वैसे ही अनेक भाषा-टीकाएं आदि वचनोंके साथ मुद्रित होकर प्रकाशित हुई हैं, वचनोंका रहस्य समझनेमें उनकी आवश्यकता भी है, फिर भी उनको वचन-साहित्य नहीं कहा जा सकता। इन वचनोंमें अनेक उद्धरण आते हैं । ये उद्धरण कुछ वेदके होते हैं, कुछ उपनिषदोंके होते हैं, कुछ शैवागमोंके होते हैं, कुछ पुराणोंके भी होते हैं। ऐसे अवतरण अधिक नहीं हैं। जो हैं वे प्राचार-धर्मके वर्णनके समय आये हैं। ऐसे उद्धरण कुछ वचनकारोंके वचनोंमें नहींके वरावर हैं और कुछ वचनकारोंके वचनोंमें बहुत हैं । श्री बसवेश्वर, अल्लमप्रभु,. आदि वचनकारोंके वचनोंमें वे नहीं के बरावर कहे जा सकते हैं, तो चन्नवसवके. वचनोंमें बहुत पाये जाते हैं । जहाँ कहीं नीति-नियमोंके वचन हैं वे स्वानुभवके आधार.पर हैं, उनमें किसी प्रकारके उद्धरणों को कोई स्थान नहीं। अपने वचनोंमें वचनकारोंने जहाँ कहीं ऐसे उद्धरण दिये हैं वहां श्रुति, स्मृति, आगम