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48. अथ श्री संघपटक
. अर्थः-वळी संयम रुपी शरीरने उपष्टंन करनार ने एटले टेको आपनार , ए हेतु माटे ए प्रकारनो जे हेतुप्रयोग को तेपण अघटित . केम जे विशेषणे करीने असिफ बे, एटले हेतुप्रयोग खोटो डे केम जे पूर्व कां ए प्रकारना न्याये करीने निरंतर आधाकर्मनुं जोजन करनार यतिने संयमरुप शरीरनीज असिधि ले माटे वळी श्रावकनी श्रझावृद्धि थाय ए हेतु माटे ए प्रकारनो बीजोहेतु प्रयोग कर्यो ते पण सारो नथी केम जे आधाकर्म जोजननुं ग्रहण करवू ते आगम विरुद्धपणे बाधहेतुनुं स्थान डे एटले ए अनुमान प्रयोग निर्बाध नथी कीये दृष्टांते ? तो जेम ब्राह्मणने सुरापान करवू ए सुरा मुघनी पेठे नरम वस्तु ए हेतु माटे ए प्रकारनो अनुमान प्रयोग जेम बाधित तेम आ अनुमान प्रयोग पण बाधित ए. टले खोटो डे.
टीका:-तथापि प्रतिवाद्युपन्यस्तहेतुदूषणमात्रेण न स्वपद सिकिरिति स्वपदोपिसाधनमुच्यते ॥ यतीना माधाकर्मन्नोजन मनुपादेयं षटजीवनिकायोपमई निष्पन्नत्वात् तथाविधवसत्यादिवत् ॥ तथा यतीना माधाकर्मजोजनमजोज्यं धर्मलोकविरुष्क वाद्गोमांसवदिति ॥ एवंचोपपन्नमेतत्संघादिनक्तं यतिना न लोक्तव्यमितिवृत्रार्थः ॥ ६॥
अर्थः तो पण प्रतिवादिये स्थापन कर्या ने हेतु तेमां दूषण देखामवा मात्रे करीने पोताना पदनी सिजि नथी थती माटे पोताना पदने विषे पण अनुमान साधनना प्रयोग करी देखा जे.जे यतीने आधाकर्म भोजन ग्रहण कर योग्य नथी केम जे न जीव निकायना मईन थकीनत्पन्न थवाप ए हेतु माटे जेम व जीवनि