Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 670
________________ (६४४) अथ श्री संपपट्टका -MAM . MAM - - स्तस्य आवेशःआवेगःनत्कर्षों येषामितिव्यधिकरणो बहुव्रीहिः तथा येन वंति।संज्वलनकषायोदयत्वेन तेषां तन्निबंधनप्रथमादिकषायोदयानावात् ॥ अर्थः-ते महा सत्ववंत पुरुषो स्वजन. तथा धन तथा पुत्र तथा स्त्री इत्यादिक संगनो त्याग करीने प्रव्रज्या गृहण करे ने तेमने गृहस्थादिकने विषे ममतादिक थवानो अवकाशज थतो नथी एटले तेवा महांत पुरुषो गृहस्थादिकने विषे ममता करेज नहीं, एतो नपुंसकनेज गृहस्था दिकने विष ममता थाय ए हेतु माटे. ए पुरुषो एवा ने तेथी ममतादिक वर्जित कह्या. वळी संक्लेश कहेतां अविजिन्न प्रवाह पणे जगातो जे रौज अध्यवसाय, तेना जे आवेश कहेता वेग ते २ जेमने ए प्रकारनो व्यधिकरण बहुव्रीहि समास करवो, ते प्रकारना जे नथी. केम जे ते बकुश कुशीलने संज्वलन कषायनो उदय डे पण ते मदादिना कारण जूत जे प्रथमादि कषाय एटले अनंतानुबंधि आदि कषाय तेनो उदयन नथी ए हेतु माटे. टीका-न कदान्निनिवेशाः अनाजोगादिना अन्यथाकारं स्वयंप्रज्ञते श्रज्युपगते वावस्तुनि कुत्सितमानसाग्रहवंतो ये न , जवंति तनिमित्तजनरंजनापरिणामालावात् ॥ ममताजीवन नयादयश्च साधुत्ववाधकत्वायतीनां सर्वथा हेया एवेत्यतस्तेषामिह निषेधो विशेषण प्रदर्शितः ॥ ___ अर्थः कुत्सित आग्रहवाला नथी एटले अजाणपणे थः -

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