Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 700
________________ (६७८) - अथ श्री संघपट्टका - Mmma वात अन्यदर्शनोना शास्त्रमा जे जे एक समे दैत्यनो अधिपति बलिराजा महा बळवान थयो तेणे इंजने जीती इंसासन उपरथी काढी मूक्यो, पडी ते गादी उपर बलिराजा इंऽ थयो, तेणे पोताना ईशासननी दृढताने अर्थे पोताने अर्थे पृथ्वी उपर आवी नर्मदा नदी नपर यज्ञ करवा मांमया त्यारे जगत्पालक विष्णुये ते अन्याय जोश श्रवतार लीधो पनी वामणु रूप करी ब्रह्मचारीनो वेष जे दंग कमंमलु, कौपीन, मृगचर्म, इत्यादि धारण करी कपटथी बलिराजाना यज्ञमां गया अने त्रण मगला पृथ्वी मागी, पनी पोतानुं वीराट रूप प्रगट करी के नगलांमां सर्व जगत् लरी लीधुं अने त्री भगवं बळी राजाथी न अपायुं त्यारे तेना जपर पग मूकी पाताळमां चांपी घाख्यो, अने एनी सर्वे राज्यसमृझिजने आपीने पालो शासने बेसामयो इत्यादि सविस्तर कथा वामनपुराणथी जाणवी. टीका:-लावण्यावसथो यथा पतिरपांनो पर्वतदोन्नितः . शृंगीव द्युसदांसुवर्ण सुनगो नोचैः सुरागाश्रयः।। यः कल्प रिव अतार्पित फलो नोवत्सदापद्धवः, साम्यं यस्य तथापिशस्य यश सस्तैः कुर्वते बालिशाः॥५॥ । अर्थः-वळी ते केवा ? तो लावण्य मात्रने रदेवानुं घर रुप, जेम जलने रहेवानुं घर समुसळे तेम, तेमां पातुं विशेष जे जे समुन मंथन कर्यु त्यारे पर्वतवके समुज्ने कोन थयो । श्रने श्रा आचार्य को जगाए दोन पाम्या नथी. वळी उंचा मेरुपर्वतना जेवो सुंदर वर्ण जेमनो एवा बे, देवताने प्रसन्न करे एवो मेरुपर्वत सारा रंगनो एटले रागनो आश्रय ले अने श्रा श्राचार्य ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 698 699 700 701 702 703