Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 672
________________ 8 अयं श्री संघपटक अर्थ:-जे ए प्रकारे गुणगणे सहित ले ते साधु . आ काळमां पण एटले सुसाधुनो विरह जेमांडे एवी आशंकाए स. हित एवो आ दुषमा काळ तेने विषे पण सुसाधु होय तो उषम सुखमादिक बीजा काळमां होय तेमांशुं कहे ! ए प्रकारनो अपि शब्दनो अर्थ .श्रा जिनशासनने विषे सूत्रने विषे प्रीतिवाळा एटले सिकांतनुं जण नणाव, केहेवू, सांजळ तेने विषे तत्पर एवा, केमजे सिद्धांतनुं जणवू इत्यादि तेमनी शिक्षा शास्त्रमा सांजळीए बीए ए हेतु माटे. टीका-॥ यमुक्तं ॥शास्त्राध्ययने चाध्या पने च संचिंतने तथात्मनि च ॥धर्मकथने च सततं यत्नः सर्वात्मनाकार्यः॥ न तु बिगिन व प्रवादिनमारज्य व्यवहारमंत्रादिप्रयोगतत्पराः॥ एतेन तेषामुन्मादाद्यनावः प्रतिपादितः ॥ महात्मनां सूत्राद्यध्ययनादेरेवं फलत्वात् ॥ एतेन संत्येव संप्रति यथोक्तलक्षणनाजो यतयोऽदर्शनादित्यादि यदाशंकितं तदपास्तम् ॥ अर्थः-ते वात शास्त्रमा कही ने जे, साधुए शानुढे जण तथा नणावq तथा चिंतन कर तेने विवे तथा आत्मानो विचार करवो तथा धर्म संनळाववो तेने विषे सर्व प्रकारे निरंतर यत्न करवो. पण लिंगधारीनी पेठे जे दिवसथी प्रवज्या लोधो ते दि. वसने आरंजी व्यवहार करवो तथा मंत्रादिको प्रयोग करवो तेने विव तत्पर नया थता. ए वचन कर्यु तेणे करीने ते सुविहित सा. धुने उन्माद आदि दोष नयो एम प्रतिपाइन कयु, मोटा पुरुषोने

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