Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
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(१५८)
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अय श्री संघपट्टका
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अर्थः-एज हेतु माटे कोइ प्रकारना कर्म दोषयी चरण करणमा बालसु हाय तेणे पण शुरू मार्गनीज प्ररूपणा करवी, ते वात शास्त्रों कहीजे.
टीका:-तथाविधस्यापि शुद्धपथप्ररूपणात् प्रेत्य बोधिप्राप्त्या कचित्संसारपारावार निस्तारात् ॥ अशुपथप्ररूपकस्य पुष्करक्रियाकारिणोप्यमुत्र बोधिहत्यानंतनवनिर्वनैनात् ॥श्रतएव ताहशस्य दर्शनमात्रमपि श्रुते निवारितं ।।
अर्थः तेवो ये तोपण, एटले क्रियात्रष्ट डे तोपण शुद्ध मार्गनो प्ररूपक डे, ए हेतु माटे मरण पाम्या पठी समकीत पामीने को प्रकारे संसार समुजनो निस्तार करशे, अने अशुद्ध मार्गनो प्ररूपक डे, ने ते जो पुष्कर एटले अति आकरी क्रियानो करनार के तो पण परलोकमां, समकीत नाशथवाथी अनंता नव ज्रमण करशे ए हेतु माटे, तेवानुं दर्शन मात्र पण सिद्धांतमा निवारण कयु जे.
'टीका:-॥ यदाद ॥
उमग्गदेसणाए, चरणं नासिति जिगवरिंदाणं॥ वावन्नदसणा खलु, नहुलप्ता तारिसा दटुं॥
श्रतः शुक्रपथमेव ते प्रथयंतिाएत एव प्रास्तमिथ्याप्रवादाः स्वपके निराकृतोत्सूत्रोच्चावचवक्तव्यताः परपकेतु निरस्तप्रावा कुकमताः॥ बंद्या यथाई प्रादशावर्त्तवंदनादिनाप्रणमनीयाः ॥

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