Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 690
________________ (१६) 16 अथ मी सघ पता ANNNN Manmmmm.. - मत्वेन पुरारोहत्त्वाच्चऽर्गप्राकारस्तस्मिन् अनिलूते उपझुते विमंबित इत्यर्थः ॥ साधु वेषै लिगिन्तिः अर्थ:-नगवतनुं शासन ने तेज मिथ्यात्वादि वैरीनासमूहथी रक्षा करवा समर्थ डे ए हेतु माटे, तथा व मूल माटे शत्रु मात्र कय करवा समर्थ नथी थता ए हेतु माटे उन्नतिवाळो ने माटे दुःखे थारोहण करवा योग्य , एवो जे जिनमत रूपी पुर्ग एटले किटलो ते लिंगधारीए परालव करे बते एटले विनं. बना पमामे बते एटलो अर्थ ने. टीका:---जस्मकोजस्मराशिग्रहः स एवाईवासन रतानां नानाविध बाधा विधायित्वात् म्लेचस्तु रुष्कवाधिपस्तस्य सैन्यास्त दनुवर्ति चेष्टितत्वात सैनिकास्तै विषियिन्तिः कामुकैः द्वितीयपके वशीकृत बाह्यदेशेः अथ कथमेवं विधस्यापि जिनमत पुर्गस्य विषयिनीरपि लिंगिनिराजिन्नव इत्यतआह ॥ अर्थः-स्मराशीनामाग्रह एज अरिहंतना शासनमां आशक्त पुरुषोने नाना प्रकारनी पीमाना करनार बे, माटे म्लेड जेवो , तेनी सेनामा रहेनारा एटले नस्मगृहरूप म्लेड राजाने अनुसरी रहेनारा, एवा अने विषय बुब्ध एवा लिंगधारीए जि. नमत रुपी पुगेनो परानव कौँ हवे म्लेच राज पक्ष एम अर्थडे जे, वश कर्या ने बाह्यदेश जेमणे एवा जेनी सेनाना लोक बे एवं म्खेड राज ने हवे आ प्रकारनो जिनेश्वर लगवंतना मतरूपी मोटो

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