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अथ श्री सघपट्टका -
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रहस्यमवस्यति ॥ अहमेव सकलश्रुतपारावारपारदश्वा ॥ ततोयमहं ब्रवीमि समुक्तिमार्ग इति ॥
अर्थः-वळी श्रातो अतिशेज मोटुं कष्ट डे इत्यादि पूर्वनी पेठे जाणq ते पूर्वे कह्यो एवो पोतानी श्छा प्रमाणे चालनारो कोक आचार्य जे ते सारा ज्ञानदर्शने युक्त ने ज्ञानदर्शन चारित्र डे लक्षण जेनुं एवो जे मुक्तिमार्ग तेने विषे प्रवर्तेला ने मुक्ति मार्गना जाण एवा जे सुविहित साधु तेने हसे ले जेम अज्ञानिने अपमान सहित हसे ले तेम ते वात कहे जे अहो आ अगोतार्थने मूर्ख शिरोमणि एवा डे ने सिद्धांत रहस्यने नाश करनारा द ने हुंज समस्त सिद्धांत समुघनो पारगामीडं माटे हुँ जे बोई एज मुक्ति मार्ग इत्यादि.
टीका:-किमित्येवमुपहसती यत आह ॥ तद्वाक्यानमुवर्तिनोयतस्ते गीतार्थ । नत्सूत्रं मुक्तिपथप्रतिपादकं तद्वाक्यं नानुरुध्यंत इति ॥ अतएव दुःखमासमयजिनशासन नविष्य दशुननाव सूचक दुस्वप्नाष्टकांतः स्थवानरफलं विवृएवताहर जअसू रिणानिहितं ॥
अर्थ:-हवे ए केम एम उपहास कर ले तो त्यां कहे जे जे जे हेतु माटे ते गीतार्थ जे ते उत्सुत्र एवु मुक्ति मार्गने प्रतिपादन करनार तेमनुं जे वचन तेने अनुसरता नथी ते हेतु माटे एज का. रण माटे मुखमा समयने विवे जिन शासनमां यशे एवा जे अशुभ जाव तेनी सूचना करनार जे आउ मागं स्वप्न तेनी माये वानर फळ स्वप्ननो विस्तार करता हरिनसरिए कडं वे के.