Book Title: Sanghpattak
Author(s): Jinvallabhsuri
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 654
________________ - अथ श्री संघपट्टका mmonwww योग्यं प्रति हितैषिणापि सत्यमपि हितोपदेशवचनं न नाषणीय। तस्य कर्मबंधहेतुत्वात् ॥ तथा क्वचिदटव्यादौ तस्थुषा मुनिना देहशुषा पिमृगं मृगयमाणस्य व्याधस्यानुयुजानस्यापि तस्य पुरतो मृगदर्शनं सत्यमपि नानिधातव्यम् ॥ अर्थ:-चकारनो समुच्चयवाचक अर्थ ले. आ पूर्वे कयुं तेणे करीने " सच्चीवी" इत्यादि आगम वचनना बळे करीने परने क्ले. शनं कारण एवं सत्य वचन पण न बोलवू. ए प्रकारनी जे आशंका करी ती ते पण उर करी, केमजे ए आगम वचननो विषय जदो ए हेतु माटे.ते जूदा विषयपणुं देखामे ले जे, जे पुरुष धर्मने अयोग्य ते प्रत्ये हितने श्वनार पुरुषे पण हितकारी उपदेश वचन सत्य ले तोपण न बोलवू. केमजे तेने कर्मबंधनुं कारणपणुं थाय ने ए हेतु माटे. ते कहे जे जे, कोइक अरण्य प्रमुख स्थळने विषेरहेला मुनिये पारधीना जयथो नाशीने मृग संतायो , तेने पोते जाणे डे, तोपण मृगया करनार पारधीये मृग खोळतां मुनिने पूज्युं तोपण ते आगळ सत्य वचनः पण न बोल्या, माटे एव। जगाए सत्य न बोल, एम शास्त्रनो अभिप्राय डे. टीका-तद्विधातानिमिशत्वात् ।। किंतु तत्र तहिपरीतं वक्तव्यं तहितत्वात् ॥ तदेव वचनं तत्र सत्यं ॥ नुतहितमितिवचनात॥इत्येवमादिरस्यागमस्य विषयः॥तु पार्श्वस्यादि. मलिन्दशीकृत्योत्पथेन संसारपटली नीयमानं नोराजकमि. व जननिवहमवेदय केनापि महासत्वेन विवोयमानस्य पूत्कार

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