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ong. अय श्री संघपटक
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टीका-ननुकथमेतानि गरीयांसि धर्मकृत्यानिकुमतादि सेशमात्रेणापि प्रतिरुध्यते॥ नहिमृणालतंतुना दंतिनः प्रतिवर्ल्ड पार्यंत इत्याशंक्यविवक्षितार्थप्रसाधनानुगुणमुपमानमा ।। वरनोजनमिव स्निग्धमधुरसुस्वादजेमनमिव । श्वेत्युपमानद्योतकमव्ययं ॥ विषलवनिवेशतोगरलकणप्रक्षेपात् ॥
अर्थ:-तर्ककरि समाधान थापे जे जे आ अतिशे मोटा धर्म कृत्य जे जिनमंदिरादिक ते जे ते कुमतादिकना लेश मात्रे करीने पण केम प्रतिरोधने पामे एटले केम अहितकारी थाय केम जे कमलना तांतणावमे हाथी जे ते बांधवा न समर्थ थए तेम सगार कुमतादिके करीने ए प्रकारनां मोटा धर्मकृत्य दोषरुप केम थाय एवी आशंका करीने कद्देवानी का कर्यों एवो जे अर्थ तेर्नु जे सिद्ध कर तेने अनुसरतो के गुण जेनो एq नपमान कदे के एटले तेनी उपमा दे. जे श्रेष्ट भोजन एटले सुंदर मधुर सारूं स्वादिष्ट नोजन जेम फेरना लवनोप्रवेश थवाथी अहितकारी थाय ठे तेम ए सर्व धर्मकृत्य ते कुमतादिना लवथकी अहितकारी थाय ठे आ जगाए नपमा अलंकारने कहेनार श्व अव्यय बे.
टीका:-श्रयमर्थः ॥ दृशीहि विषकणस्यापि परिणामिकाशक्तिर्ययाहृद्यमपि वह पिनोजनंदपादेवसकलमसौस्वात्मन्नावेनपरिणमयति तथा परिणमितंचतभुज्यमानमपायायजायते यथा तथा कुमतादिलेशस्यापि मिथ्यात्वरूपत्वादेवंविधमहिमायेन महीयोपिजिनगृह विधानादि धर्मकर्म स्वस्वरूपतया नावयति। तथानावितं च तबिधीयमानमपि संसाराय संपद्यन इति ॥
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