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समय देशना - हिन्दी पायेगा । इसलिए भटक मत जाना । अपना मान मत लेना। इस नगरी से उहूँगा और इस शरीर - नगर से भी जाऊँगा। मैं परदेशी ही हूँ, क्योंकि मेरा ध्रुव-धाम किसी को मालूम नहीं। पता नहीं है, मकान का नम्बर नहीं है । मेरा ध्रुव धाम अखण्ड चेतन शुद्ध ज्ञायकस्वरूप है । मेरा ध्रुवधाम सिद्धत्व नहीं, वह तो पर्याय है । मेरा ध्रुवधाम असिद्धत्व नहीं । मेरा ध्रुवधाम तो एक ज्ञायकस्वरूप । वहाँ से कभी मैं जाता नहीं हूँ । लोग समझते चले गये कि मेरा ध्रुवधाम तो सौधर्म इन्द्र की विक्रिया है। हर क्षेत्र का श्रावक कहता है, कि सौधर्म इन्द्र मेरे क्षेत्र में पंचकल्याणक मनाने आया है। पर किसी को पता ही नहीं कि सौधर्म इन्द्र अपने विमान से कभी गया ही नहीं है। मैं तो ध्रुवधा हूँ । ज्ञेयों में मेरे ज्ञान की तरंगें गई हैं, मैं तो परज्ञेय में गया ही नहीं । मेरा ज्ञान पर में तन्मय भाव से चला जायेगा जिस दिन उस दिन मैं जड़ हो जाऊँगा, और वह चेतन हो जायेगा । मेरा ज्ञान इस माइक में चला जाये, मेरा ज्ञान कैमरे में चला जाये, तो मैं जड़ हो जाऊँगा और ये ज्ञानी हो जायेंगे। मैं ऐसा ज्ञाता नहीं हूँ, जो अपनी चेतना को दे बैठूं। मैं तो ध्रुवधाम हूँ। मैं अपनी चेतना कभी किसी को दूँगा नहीं, मैं परम लोभी हूँ। जो चेतना को नहीं देता, वह ध्रुवद्रव्य ज्ञायकभाव होता है। जो अपने चित्त को भी पर को नहीं देता, उसका नाम ही साधुस्वभाव होता है। और जो अपने चित्त को पर को देता है, वह व्यभिचारी - बुद्धि होता है। बेटे की माँ से क्या कहता है? हे ज्ञानी ! इसने अपने चित्त को बेटे की माँ को दे डाला, सो ये यहाँ बैठा है । और चित्त अपने बेटे की माँ को नहीं देता, तो यहाँ पिच्छि- कमण्डलु लिए बैठा होता । चित्त यानी मन परिणति । चित्त यानी चेतन अवस्था की पर्याय 'भावमन' । आपने अपने गुरु को चुना, तो चित्त की श्रद्धा को समर्पित कर दिया, इसलिए आप शिष्य बन गये । अपने को पति कहते हैं यह सभी, लेकिन हैं दास । चित्त मालूम कैसे दिया ? माँ की प्रीति भी छोड़ दो। जिस दिन से पत्नी को चित्त दिया, उस दिन से चारित्र खिंच
गया ।
इस कैमरे से कैसिट भरती चली जा रही है। हे ज्ञानी ! तेरे आत्मा के प्रदेश में ऐसी कैसिट फँसी हुई है जो सम्पूर्ण कर्मो को रखती चली जा रही है। जब यह कैसिट भरकर टी.वी. पर आयेगी तो चित्र दिखेंगे। ऐसे ही अगली पर्यायों में वह सब दिखेगा जो पूर्व पर्याय में किया है। कोई भरनेवाला नहीं बैठा है। आपने भोजन किया। आपके मुख में ग्रास आया, या ग्रास मुख में दिया ? सही बताना - मुख में ग्रास आ जाता, यदि मुख न खोलते तो? मुख को ग्रास दिया, कि ग्रास को मुख दिया ? ग्रास को मुख में न देते, तो ग्रास जमीन पर न गिरता । पकड़ो बात । भिन्न भिन्न है । मुख में ग्रास तभी दिया जाता है, जब ग्रास को मुख दे दिया जाता है। ग्रास तो बहुत देर बाद मुख की ओर आता है, पर पहले थाली की ओर मुख करता है। देखकर उठाते हो, या कि बिना देखे ? पहले मुख नीचे करना पड़ता है, फिर ग्रास दिया जाता है ।
ज्ञानी ! मुख यानि आत्मा । आत्मा की परिणति ग्रास में न जाती, तो ग्रास मुख में कैसे जाता ? तो आपने ग्रास को चित्त दिया है, तब ग्रास आपके मुख में आ गया। अब आपकी भाषा में बोल देता हूँ कि ग्रास में चित्त दिया है । ग्रास में चित्त न दिया होता, तो मुख में घास न आ जाती। इसलिए बेटे की माँ को चित्त दिया है । आपकी घर-गृहस्थी की बातें ही मैं करूँ तो एक 'समयसार' बन जाये। जो मैं यहाँ कह रहा हूँ, उसे आँखों से दिखा नहीं सकता। जो मैं यहाँ कह रहा हूँ, उसे आप अन्दर आँख से देख लीजिए। जो मैं बोल रहा हूँ, मुझे आँख से दिख रहा है प्रत्यक्ष प्रमाण से । एक विद्वान् को किसान हल जोतते दिखाई दे रहा है, क्योंकि आँखों से देख रहा है। पर किसान खेत की मेढ़ पर बैठकर रोटी खा रहा है बड़े आनंद से । विद्वान् को किसान रोटी खाते दिख रहा है, पर किसान को प्रत्यक्ष रूप में हरी-भरी खेती दिख रही है। यह सोच रहा है
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