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समय देशना - हिन्दी
१६० रहता हूँ, तो करूणा/अकरुणा से शून्य स्वात्म करूणा में लीन होता हूँ। तब कोई सुखी-दुखी दिखता ही नहीं है। मैं तो स्वयं में देखता हूँ, यही मेरी परम करूणा है । हे करूणाशीलो ! पर पर करूणा की है, पर निज को रूला के रखे हो, पर तेरी करुणा को मैं हिंसा घोषित कर सकता हूँ। तेरी करुणा नहीं, तेरी हिंसा है। तू सिद्धत्व की ओर जा रहा था, तू स्वयं में लीन था। ओ ज्ञानी ! सिद्धभूमि पर विराजनेवाला सर्वार्थसिद्धि पर रह गया। अब तू पुनः एक माँ को कष्ट देने आयेगा। फिर नौ माह सतायेगा, कोटि-कोटि जीवों का घात करायेगा । ये तेरी करुणा कैसी है? मैं इस पृथ्वी पर विचरता हुआ भी पर का घात देख रहा था, फिर भी पर-घाती नहीं था। अनुमोदक भी नहीं था। क्योंकि मैं निज की करुणा में भी नहीं था। ध्यान रखना, आपको किसी को इसका व्याख्यान नहीं करना है ! हमारा व्याख्यान हमारे तक ही रहने देना । ये गंभीर रहस्य है। करुणा में जा रहा था, करू णा शुद्धोपयोग नहीं है, करुणा शुभउपयोग है। शुभउपयोग में आ गया तो स्वर्ग में ही जा पायेगा, शुद्ध नहीं बन पायेगा।। जब स्वर्ग जायेगा, फिर नीचे आयेगा, फिर माँ को रूलायेगा, मृत्यु करेगा तो माँ बिलखेगी जन्मलेगा तो माँतडपेगी बिलखेगी नहीं क्योंकि पत्र का राग सख दे रहा है पर पत्र की उत्पत्ति में जो वेदना हो रही है, शरीर में, वह तड़फा रही है। एक माँ प्रसूति के लिए तैयार थी। हम लोग सो रहे थे। वह बहुत जोर से रो रही थी, तो हम जाग गये। सोचा कि किसी से झगड़ा हो गया, या कोई पीट रहा है। बाद में मालूम चला कि शिशु को जन्म दिया है। जो करूणा थी वह इसीलिए थी कि कोई तड़फे न । पर तेरी करूणा से तड़फ भी रहा है, बिलख भी रहा है , करूणा वह होती है, जो संसार का कारण नहीं होती हो। जो संसार का कारण है, वह करुणा कैसी? पर जब-तक उस उत्कृष्ट स्थिति को नहीं छू पाये हो, तब तक करूणा करते रहना।
काश ! आज इन चार की जगह सभी मुनि होते, तो मैं आपको और ऊँचे ले जाता।
योगी आत्मभावना में चलता है। विद्युत होते हुये भी बल्ब बुझा देखा जाता है। करेंट भी है, फ्यूज भी नहीं हुआ है, जल भी रहा था, पर जलते-जलते बंद हो गया, कारण क्या ? बात ऐसी थी, कि नीचे कक्ष में दो हीटर चालू कर दिये थे, तो बोल्टेज कम होने से बल्ब बंद हो गया । हे योगीश्वर ! आत्म-तत्त्व का प्रकाशमान बल्ब जल गया था। इधर किसी रागी ने आकर के भोगवृत्ति की चर्चाओं का हीटर जला दिया, तो यह अंदर का शुद्धात्म तत्त्व का बल्ब बुझ गया, जबकि शक्ति थी, पावर था, सबकुछ था। इसलिए मुनियों को गृहस्थों से दूरी बनाये रखना चाहिये । भैया ! मेरी रक्षा करना । आप दूरी बनाये रहा करो।
ये समयसार है। तेरे अन्दर वैराग्य शक्ति है, पर घने-घने रागियों के बीच बैठते है तो शक्ति टिमटिमा गई, जो धारा विद्युत की थी, वो जाकर के हीटर में समा गई। अब चाहे रोटी सेंक लो, चाहे दूध गरम कर लो।
आत्मभाव चिद्रूप भाव है। एकत्व भाव रहेगा, तो विभक्त भाव नहीं रहेगा। आत्मा को समझने के लिए आत्मा को कितना पुरुषार्थ करना पड़ता है । आत्मा की जानकारी है अभी,जाननानुभूति नहीं है । पर ये जानकारी आत्मा जो ले रही है, वह ऊपरी सतह है। पर जिस दिन भीतर से जान लेगा, उस दिन बाहर में आयेगा पाय करो। मार्ग पर चलो स्वीकार है पर मार्ग पर चलना मात्र मार्गी नहीं है। रोटी बनाओ सत्य है । चूल्हा जलाओ, सत्य है। रोटी का ग्रास तोड़ो, सत्य है। मुख में रख लो, सत्य है। फिर भी स्वाद नहीं है। मुख में पहुँच गया, खुश मत हो जाना कि स्वाद मिल ही जायेगा, अन्दर जायेगा ही। मुख में रखा, बाल आ गया मुंह में, तो मुख का भी बाहर आ गया। मुख में पहुँचे, ग्यारहवें गुणस्थान में पहुँचे, फिर भी जीव नीचे
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