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समय देशना - हिन्दी
१८६ का नहीं है क्या ? ज्ञानियो ! पंचमकाल में महावीर जैसी चर्या नहीं है, पर महावीर के द्वारा उपदिष्ट चर्या है कि नहीं? यह है स्वरूप। पर इसको गौण करके कथन किया जा रहा है। आचार्य कुन्दकुन्द की वाणी को स्वपक्ष से कथन करना, यानि जिनशासन की हत्या करना है। शुद्ध डली का सोना नहीं है, पर कुंडल में सोना है। ऐसे ही वर्तमान के जितने त्यागी हैं, वे डली के तो नहीं हैं, पर सोने के तो हैं। और शुद्ध डली के क्यों नहीं है? क्योंकि वैसा संहनन नहीं है, वैसा ताप नहीं है, जिससे सोना शुद्ध हो जाये । उतनी उत्कृष्ट अग्नि तो चाहिए न । सोलह ताप इतनी ऊष्मा तेरी स्यानाग्नि के तेज से इतनी उष्मा दे देना, कि ताँबा, जस्ता रूपी जितने द्रव्यकर्म, भावकर्म हैं, वे सब पिघलकर बाहर फिक जायें । शुद्ध सोना शुद्ध उपयोग का नहीं, अशरीरी शुद्ध आत्मा का विषय है। प्रथम भूमि का शुद्धोपयोग भी मिलावट है, क्योंकि बारहवें गुणस्थान तक शुद्धोपयोग होता है। शुद्धस्वरूप स्वभाव है। छद्मस्थ के लिए शुद्धोपयोग स्वरूप है। वीतरागी शुद्धोपयोग के फल को भोगता है । वह सौ प्रतिशत सोने को नहीं देख पा रहा है, दस प्रतिशत अशुद्धि को देखने में लगा है।
एक बार एक व्यक्ति रो रहा था, पर उसकी पत्नी हँस रही थी। किसी ने पूछ लिया कि आपके पति रो रहे हैं, और आप हंस रही हैं, बात क्या है ? बात कुछ नहीं है, इन्होंने गोदाम में माल भरा था, सोच रहा था कि पाँच लाख बचेंगे, पर तीन लाख शुद्ध बचे हैं इसके लिये, पर वो दो लाख के टेंशन में रो रहे हैं। तीन लाख का सुख नहीं भोग रहा, कह रहा है कि दो लाख का घाटा पड़ गया। बताओ कहाँ पड़ा घाटा ?
__ हे ज्ञानियो ! पंचमकाल जैसे खोटे काल में तीन लाख बच रहे हैं। सम्यक्दर्शन-ज्ञान-चारित्र, उसकी तू चिंता नहीं कर रहा है, तू दो लाख का टेंशन कर रहा है। आज भी मोक्षमार्ग है । रत्नत्रय की एकता होने से मोक्षमार्गी हैं।
श्रद्धा में कमी बिल्कुल नहीं लाना । शरीर अस्वस्थ है, कुछ न भी कर पाओ, पर अपनी श्रद्धा को अस्वस्थ मत करना, यही कहना -
श्रीमत्-परम-गंभीर, स्याद्वादामोघ-लाञ्छनम् ।
जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन शासनम् ||३||अर्हद्भक्ति।। हे त्रिलोकीनाथ ! आपका शासन, जिनशासन जयवंत हो और आपका शासन जयवंत रहेगा तो मैं तो स्वयं जयवंत हो ही जाऊँगा। क्योंकि राजा सुरक्षित है, तो प्रजा भी सुरक्षित हो जायेगी। इसलिए अपने स्वार्थ के लिए नहीं जीना, जिनशासन को सुरक्षित रखना । बन जाना वीर निकलंक, अकलंक । पर इस सूत्र को मत भूल जाना जो स्याद्वाद के चिह्न से चिह्नित है। ऐसा 'जीयात् त्रैलोक्य नाथस्य शासनम् जिनशासनम्" हमारे बुजुर्ग ऐसा मंगलाचरण करते थे, जिससे हमारी जिनशासन में श्रद्धा बढ़ती थी। पर आज मंगलाचरण फिल्मी धुन पर होते हैं। लोग फिल्म में पहुँच जाते हैं, और मंगलाचरण नहीं सुन पाते, क्योंकि धुन में ही रम गये।
संस्कृत के शब्द समझ में नहीं आते हैं, फिर भी सुनने में अच्छा लगता है। शासन किसका है? जिन का है। अभी किसका है? भगवान् महावीर का है। भारत शासन है, उसमें प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति कोई भी हो सकता है। कब तक शासन चलेगा? जब तक दूसरा चुन कर न आ जाये। ऐसे ही भगवान् महावीर का शासन चल रहा है। कब तक चलेगा? जब तक दूसरा कैवल्य को प्राप्त करके न आ जाये। अपन तो महावीर की प्रजा हैं, उन्हीं की बात कहने वाले हैं। अन्तिम ताव (ताप) से उतारे शुद्ध सोने की भांति जो परमभाव का अनुभव करते हैं, उनके लिए। सत्य है, जिसको शुद्ध सोना मिल गया हो, और सौ, दो सौ किलो मिला हो, उनसे कोई
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