Book Title: Samaysara Samay Deshna Part 01
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Anil Book Depo

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Page 317
________________ समय देशना - हिन्दी ३०१ है ? गहरे तत्त्व को समझो। अग्नि जलते दिख रही है, बटलोई भी दिख रही है, पर जो कुछ सहन कर रहा है वह दूध और चावल । जो परिणमन चल रहा वस्तु का, वह अन्तरंग में भीतर चल रहा है। खीर भीतर पकती है, बाहर नहीं पकती । बाहर तो भेष दिख जायेगा, पिच्छि कमण्डलु, दिख जायेंगे, लेकिन खीर तो भीतर पकती है, बाहर नहीं पकती, चाहे वह विभाव की खीर पके, चाहे वह स्वभाव की खीर पके । चाहे विभाव पके, चाहे स्वभाव पके, पकना दोनों को भीतर ही है । तुम साधना के मार्ग पर खीर बनाने आये थे, पर विकारी भावों से फट गये। खीर बना रहे थे, पर वह दूध फट गया । कलश में आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी कह रहे हैं । कलंक को निकाल दिया, तो निष्कलंक भगवान् आत्मा है। आत्मा कलंक नहीं है, कलंक कर्म है। दुग्ध में खट्टापन नहीं था, खटाई ने दूध को खट्टा कर दिया, ऐसे ही घर में परिवार में, देश में, राष्ट्र में कहीं खटास नहीं होती, न किसी के मन में । परद्रव्य का परिणाम हाँ खड़ा हो गया, तो एक-दूसरे में खटास आ गई। माँ भी बेटे की बुराई करते देखी जाती है, क्या जिस दिन बेटे को माँ ने जन्म दिया था, उस दिन बुराई करने के लिए दिया था ? नहीं। जब बेटा कुछ नहीं जानता था, तब बेटा माँ का था। बेटा जानने लग गया, तो माँ को बुरा हो गया। उसका ज्ञान उसके लिए खटाई पैदा करने लग गया । ज्ञान खटाई पैदा नहीं कर गया, उसका अज्ञान खटाई पैदा कर गया। जब माँ-पिता गरीब थे, तब माता-पिता के साथ रहता था। जैसे ही पैसे कमाने लगा तो माँ-पिता को दे नहीं रहा है, खटास आने लग गई। ऐसा करो, दूध में खटाई होती तो आप जामन क्यों डालते हो ? दूध खट्टा नहीं होता, उसको बुद्धिपूर्वक खट्टा किया गया है। विश्वास रखो, अपने हृदय से पूछना, जो-जो अशुभ किये हैं, वह आत्मा ने जानकर किये हैं । अशुभ भाव आते हैं या बुलाते हो ? व्यक्ति पकड़ नहीं पाता है। आते नहीं हैं, बुलाते हो। मैं उन भ्रमों निकालना चाहता हूँ। 'आते-आते' कहकर स्वच्छन्दी होना चाहते हो। आप बड़े आराम से बुलाते हैं । हम व्रत लेते हैं, व्रत आ गया था, कि लिया था? तो व्रत जो कोई तोड़ेगा, टूट गया था कि तोड़ा था बुद्धिपूर्वक ? ऐसे विकारीभाव आते है, विकारी भावों को भी जीव बुलाता है, उसमें तन्मय हो जाता है। आते ही आप रोक लेते, तो आते ही क्यों ? वेग अवश्य तीव्र था । वेग की तीव्रता में विवेक क्षीण होता है, विवेक काम नहीं करता । भाव नहीं बिगड़े थे, भावों को बिगाड़ा था। माँ के उदर से तुम ऐसे कलुषितपरिणामी नहीं निकले थे। उस समय अच्छे परिणाम थे । खट्टे-मीठे अशुभ भावों की अनुभूति लेने के लिए तूने ही अपने मन को खट्टा किया है । व्यर्थ की बातें छोड़ दो, कि उन्होंने हमारा ऐसा कर दिया। आपके माता-पिता ने आपकी शादी करा दी न। ये झूठी बातें छोड़ दो, कि फँस गये । नेमिनाथ के माता-पिता शादी क्यों नहीं करा पाये ? पर निमित्तों को दोष देते-देते यहाँ तक तो आ गये, पंचमकाल में आ गये, अब भी नहीं संभले तो छठे काल में जाना है। इसलिए भूल को भूल तो मानना ही पड़ेगा । चावल,चावल है; दूध, दूध है; आत्मा, आत्मा है; परभाव परभाव है। परभाव का मिश्रण तूने ही किया है। कपड़े किसने पहने ? शरीर ने पहने, कि आपने ? शरीर ने पहने। तो शरीर जड़ है, वह पहनता नहीं है । इसलिये निकाल दो। मैं शरीर को पहनाये हूँ, ऐसा कहना चाहिए, वस्त्र को तन नें नहीं पहना, तन पर पहनाये हैं तूने । शरीर को बुद्धिपूर्वक पहनाये हैं। वस्त्र कौन पहने है ? आपका राग पहनाये हैं । आपका राग पर है, कि आप है ? राग पर हैं। किसमें है? जीव में है। जीव में है, तो विकारी भाव किसका है? जीव का है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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