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समय देशना - हिन्दी
३०४ है? तो आपके यहाँ मेहमान आयें, तो गन्ना रख देना थाली में और कहना - हे मुमुक्षु ! जगत में जितनी मिठाइयाँ हैं, सब इसके अन्दर हैं, इसे खा लो। कैसा स्वाद आयेगा? एक भी मिठाई का स्वाद नहीं आयेगा, गन्ने के रस का ही स्वाद आ पायेगा । पर्याय की प्रत्याशक्ति के उद्घाटित हुए बिना पदार्थ में तदरूप परिणति का स्वानुभव नहीं होता है । स्वानुभूति पर्याय के अभाव में स्वीकारोगे तो सिद्धों की स्वानुभूति श्वान में हो जायेगी। समझ में आया? शुद्ध पर्याय के उद्घाटित हुए बिना परमात्मा की अनुभूति नहीं होती, द्रव्यदृष्टि भिन्न है, वस्तु भिन्न है । हम समयसार में द्रव्यदृष्टि का कथन कर रहे है । लेकिन द्रव्य तो जैसा है वैसा स्वीकारना होगा । द्रव्यदृष्टि से श्वान भी भगवान्-आत्मा है, परन्तु द्रव्य से श्वान में स्वानुभूति भगवान् आत्मा की हो रही है क्या ? श्वान में स्वानुभूति नियम से श्वान की भी है। स्वानुभूति नहीं मानोगे तो जीवद्रव्य कैसा?
आचार्य अमृतचन्द्र स्वामी भ्रम को तोड़ने वाले हैं। जिनको भ्रम सता रहा है न, वे स्वानुभूति कहने में ही डरते हैं । वे कहते है कि सप्तम गुण स्थान के पहले होती नहीं है। अरे ! ऐसा कहो कि अप्रमत्तदशा की स्वानुभूति निश्चयानुभूति आत्मानुभूति अप्रमत्तदशा के पहले नहीं होती । लेकिन स्वानुभूति ही नहीं होती है, ऐसा कहकर जीवद्रव्य का घात क्यों कर रहे हो? मैं नहीं कह रहा, आगम कह रहा है। द्रव्यानुयोग ही नहीं कह रहा चारो अनुयोग कह रहे हैं। सुनो, सीता का अग्नि में कूदना हुआ और अग्नि का नीर हो गया, इसमें चार अनुयोग लगेंगे कि नहीं लगेंगे? पहला अनुयोग प्रथमानुयोग और प्रथमानुयोग क्रिया करते पुरुषों की बात करता है। पुराण-पुरुषों की बात कर रहा है, कि देवों ने आकर अग्नि का नीर किया, सत्य है, कि नहीं है ? चरणानुयोग से मिलो। धन्य हो, अहो सीते! आपके शील के प्रभाव से अग्नि का नीर हो गया। यह सत्य है, कि नहीं है ? करणानुयोग से ऐसा पुण्य का नियोग सामने खड़ा था, कि पुण्य की प्रबलता से अग्नि का नीर हो गया। द्रव्यानुयोग से, अहो सीते! धन्य हो तेरे द्रव्य को, तेरी शुभपरिणति के प्रभाव से अग्नि भी शीतल हो गई। शुभ परिणति न होती तो, अग्नि शीतल कैसे होती? चारों अनुयोग लग गये। द्रव्यानुयोग का व्याख्यान, कभी करणानुयोग, प्रथमानुयोग, चरणानुयोग को छोड़कर नहीं चलता । ऐसी आत्मा होती है, किसकी होती है, जैसी तीर्थंकर भगवन्तों की हुई । शुद्धात्मा कैसी होती है? जैसी अरहंतों की थी। जैसे ही आपने अरहंत शब्द बोला, तो प्रथमानुयोग खड़ा हो गया। चारों ही अनुयोगों में सात तत्त्वों का, नौ पदार्थो का वर्णन है, और द्रव्यानुयोग में कोई भी अनुयोग नहीं छूटते । मालूम, कैसे नहीं छूटते? जो-जो भी कथन हैं, चाहे प्रथमानुयोग के हों, चरणानुयोग, करणानुयोग के हों, छः द्रव्यों से बाहर किसी का कथन होता ही नहीं है। और द्रव्य का कथन करने वाला कोई अनुयोग है, द्रव्य की प्रधानता, से तो उसका नाम द्रव्यानुयोग है। जब जीवादितत्त्व और पुण्य-पाप का कथन चलता है, तो आप दो में से एक होंगे ही। पुण्य का उदय चल रहा होगा । या पाप का उदय चल रहा होगा, और दोनों से रहित जिस दिन हो जायेंगे, आप उस दिन यहाँ नहीं होंगे। पुण्य-पाप दोनों प्रकृतियों से रहित कौन-सी आत्मा है ? अशरीरी सिद्ध भगवान्-आत्मा है। अरहंत भगवान् के भी पुण्य-पाप प्रकृतियाँ हैं,औदयिक भाव है । असाता का उदय है कि नहीं? ग्यारह परीषह हो रहे है कि नहीं? उन्हें कवलाहारी मत कह देना । मोहनीय कर्म का क्षय हो गया, मोहनीय के क्षय होने के कारण वे असाता कर्म असाता रूप में होते नहीं, क्योंकि पुण्य का फल प्रबल है। 'पुण्यफला अरहंता', कपड़े उतारते-उतारते भरत को केवलज्ञान हो गया । कपड़े उतारते-उतारते केवलज्ञान हो ही गया था, फिर कपड़े उतारे ही क्यों? कुछ बातें विवेक से कहना । आज आपको जाना था औरंगाबाद, आपसे पूछा कि क्या
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