Book Title: Samaysara Samay Deshna Part 01
Author(s): Vishuddhsagar
Publisher: Anil Book Depo

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Page 329
________________ समय देशना - हिन्दी ३१३ व्याख्यान कर रहे हो, और तत्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वामी ने 'आद्ये परोक्षम्' कहा है, फिर आप प्रत्यक्ष क्यों कहते हो ? सिद्धान्तशास्त्र में इन्द्रिय-मन को सापेक्षता ग्रहण करने के कारण परोक्ष कहा है। लेकिन जब योगी आत्मस्थ होता है, आत्मस्थ काल में जो मति-श्रुत ज्ञान है, वह ज्ञान किसका है ? आत्मा का है। आत्मा को ही ग्रहण करना, कोई-कोई वस्तु को ग्रहण नहीं करना, वह आत्मा का गुण है । गुण-गुणी में लक्षण- प्रयोजन की अपेक्षा से भिन्नत्व भाव है, परन्तु अधिकरण की अपेक्षा से अभिनत्व भाव ही है। आत्मा से भिन्न ज्ञान नहीं है, और ज्ञान से भिन्न आत्मा नहीं है । जो मति-श्रुत शब्द है, यह ज्ञानगुण की पर्याय के लिए शब्द है, ज्ञान के लिए नहीं है । ज्ञान तो त्रैकालिक है, विकारी भाव का अभाव होगा, तो इसी आत्मा में कैवल्य होगा। ___ पाँच ज्ञान हैं। वह ज्ञानगुण की पर्याय हैं, गुण नहीं हैं पर्याय विनशती है, पर्याय उत्पन्न होती है, परन्तु गुण त्रैकालिक होता है। शक्कर है, उसकी मिश्री आदि मिठाई भी बनती है, वे पर्यायें तो बदल जायेंगी, परन्तु शक्कर का मीठापन नहीं बदलेगा। पर्याय जितनी शुद्ध बनती जायेगी, उतनी मिठास बढ़ती जायेगी। गुड़, शक्कर, मिश्री आदि वह सब गन्ने का ही विकार है। इसी प्रकारज्ञान गुण की पर्याय तो बदल जायेगी, परन्तु जो चेतनत्व भाव है, वह त्रैकालिक ध्रुव है। जो परोक्षानुभूति कही है, वह आत्मा से भिन्न नहीं है, इसलिए प्रत्यक्षानुभूति है। जिसे आपने बार-बार जाना, अनुभव किया, उसे भी वे स्वानुभूति अब नहीं कह रहे । क्यों ? मैं क्या समझाऊँ तुझे? तूने ज्ञेयों को जानने की आदत डाल ली है। ज्ञेयो को जानकर अपने को ज्ञानी कह रहा है, ज्ञान को तो तूने जाना ही नहीं है। तुम क्या प्रश्न कर रहे हो, कि ज्ञेयों को न जाने, तो ज्ञान कैसा ? मतलब तेरा ज्ञान पराधीन है। ये ज्ञेय तो जड़ हैं न, यानी कि तेरा ज्ञान भी जड़ है ? ज्ञान का ज्ञेय ज्ञान भी हो सकता है न । परीक्षामुख सूत्र से, ज्ञेय होंगे, तभी ज्ञान होगा क्या ? प्रकाश और पदार्थ के होने पर ही ज्ञान होगा क्या ? ___ शब्दानुच्चारणेऽपि स्वस्यानुभवनमर्थवत् ॥१०॥ परी. मुख ॥ _शब्द का उच्चारण नहीं करने पर भी मैं तो कह रहा हूँ। परीक्षामुख' को गहरे से अध्ययन कर लिया न, तो कथन्चित समयसार को पढ़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जबकि परीक्षामुख न्याय का ग्रन्थ है। जो 'परीक्षामुख पढ़ लेगा न, उसके आगे-आगे समयसार का अर्थ दौड़ेगा। इतना सारा आप जान रहे हो, सब आप बोलते हो, क्या मकान में घट रखा हुआ है, बिना बोले भी जान लेते हो कि नहीं? जान लेते हो। जैसे अपनी आत्मा को जानता है, वैसे ही बिना कहे पर पदार्थो को भी जाना जाता है। सर्वथा ज्ञेय होंगे सामने, तभी जानेगे, तो आप चार्वाक हो जायेंगे क्यों चार्वाक का सिद्धान्त क्या है ? जो प्रत्यक्ष है, वही प्रमाण है तो फिर कहना, आपने दादा के दादा के दादा को देखा क्या, दिख रहे क्या ? नहीं, नहीं देखा। तो तू कहाँ से आया ? प्रत्यक्ष कहने वालो। अनुमान पर भी ध्यान दो। तुम हो यानी तुम्हारे दादा के दादा के दादा थे। आया अनुमान । बिना अनुमान के प्रत्यक्ष को भी नहीं जाना जाता। सिद्धान्त से- परोक्ष प्रमाण की सापेक्षता में ही प्रत्यक्ष की सिद्धि होती है। बिना परोक्ष के प्रत्यक्ष की सिद्धि नहीं होती है। प्यास लग रही है, पानी सामने है, तो प्यास बुझेगी, । क्यों, कैसे जाना ? अनुमान से जाना, जो वस्तु आपको ज्ञात नहीं है आप कर्नाटक जायें, वहाँ का व्यक्ति आपको रोटी दिखाये, और अपनी भाषा में रोटी को कुछ और बोले, तो भी आप जान जाओगे कि नहीं? वस्तु को देखकर आप समझ लेते हो, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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