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समय देशना - हिन्दी
३०० उसका बुरा हम नहीं कर पायेंगे, लेकिन स्वयं बुरे अवश्य हो जायेंगे। कदाचित जिसका बुरा करना चाहते हो, उसके पाप का उदय है, तो आपके निमित्त से उसका बुरा हो भी गया, लेकिन विश्वास रखना, उसका बुरा तो उसके अपने पापकर्म से हुआ। पर बुरा करने का निमित्त बनकर तू पापी अवश्य हुआ है। आप उभयपक्ष से अपनी आत्मा के विधातक हैं। समझ में आ रहा है न ? जब तक ये समझ में आ रहा है, मेरी गलती नहीं है, इन्होंने मेरे साथ ऐसा क्यों किया, तो यह आपके जीवन की सबसे बड़ी गलती है। यह अध्यात्म विद्या है, इसमें यह पक्ष तुम्हारे मन में आ गया, कि मेरी गलती नहीं, उनकी गलती है, यानी यही तेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती है, क्योंकि जब तक मेरे मन में यह आयेगा, कि मेरी गलती नहीं, उनकी गलती है, तब तक आपको उसके प्रति कषाय आयेगी, और जो कषाय आयेगी, उस कषाय की सत्ता में आप अपना अशुभ-हीअशुभ कर रहे हो। कभी-कभी आप ऊपरी सतह पर घुले-मिले भी रहेंगे, पर अन्तरंग में पृथक् रहेंगे। आप व्यवहारी मैत्री की बात करें, अष्टधातु की प्रतिमा बनकर न करें (सामान्य रूप से करें, धनिष्ठ बनकर न करें 1) जैसे हण्डी पर पारा होता कि नहीं? भगोनी के ऊपर ढक्कन होता कि नहीं है ? ऐसा दिखता है जैसे एक हो। अष्टधातु की प्रतिमा एकमेक दिखती है, फिर भी प्रत्येक धातु स्वतंत्र है। अब उस हण्डे के पारे की बात करो। हण्डी पर पारा कब-तक ? जैसे ही भोजन पकना प्रारंभ हुआ, उबाल आया, तो पारा हट गया, छोड़ दिया साथ उसने । ऐसे भी लोग जगत में मिलेंगे, कि जब तुम्हारे पास हण्डी रहेगी पुण्य की, तब-तक सब तेरे साथ रहेंगे। तब-तक शीतलता है। जिस दिन तेरे पाप की गर्मी चढ़ गई, उबाल आया पाप का, तो मित्र अलग हट जाता है। पर उस पैदी से पूछना जो ठण्डे में भी थी, गर्मी में भी थी। कौन सहन कर रहा था? सबसे पहले आग को किसने सहन किया? पैंदी ने किया। मित्र बनाना तो ऐसे बनाना, जो पैंदी जैसे हों, मित्र ऐसे नहीं बनाना,जो पारे जैसे हों, पर विश्वास रखना.बाहर के मित्र पारे-जैसे ही मिलेंगे। तेरे अन्दर का जो मित्र है, वह धर्म है । वहीं ऐसा मित्र है, जो हर समय तेरे साथ रहेगा । जीव ने समझा ही नहीं सच्चे मित्र को। विभाव भाव, विकारीभाव, अशुभभाव, काषायिक भाव, कामुक भाव, लोभी भाव इत्यादि जो भाव है; ये आत्मा के मित्र हैं, पर ये पारे वाले मित्र हैं। आप जलो, फिर हम जाते हैं। हण्डी पर पारा काम भाव है। कितने समय तक रह सकता है? एक अन्तर्मुहूर्त में भाग जायेगा क्रोध भाव कितने समय तक रहेगा, एक अन्तर्मुहूर्त में भाग जायेगा । एक मुहूर्त के लिए आया और तुमको खाक करके चला गया । अब तुम बैठे-बैठे रोओ, पछताओ।
जीवन में ध्यान रखना, जितने विकारी भाव तेरे मित्र बन रहे हैं, सब इस पारे के तुल्य हैं। जो तेरे साथ रहने वाला है, वह साम्यभाव ही है। बाहरी आपत्ति-विपत्ति पर आप नहीं, आपकी परिस्थिति शान्त करा देगी। लेकिन भीतरी विकारों की विपत्ति आती है, उस पर साम्य रखना सीखो। किसी का धन हरण हो गया, संतति का मरण हो गया, तो पड़ोसी भी समझाने आ जायेंगे, लेकिन हे ज्ञानी ! तेरे अन्दर के धर्म का धन, शील की संतान चली जाये, तो कोई द्वारे पर बैठने नहीं आयेगा, तुझे ही देखना पड़ेगा। कौन आयेगा? अपना ही चेहरा बनाकर आप ही देखो। यह समयसार ग्रन्थ है, इसलिए ध्यान रखो, प्रत्येक त्यागी व्रती को इस मार्ग पर आने के साथ-साथ इस ग्रन्थ का एकान्त में स्वाध्याय करना बहुत अनिवार्य है। क्योंकि, यदि भीतर का ज्ञान नहीं होता, तो बाहर के कार्यों में उलझ जाते हैं, अन्दर से शून्य-के-शून्य । आपने खीर बनते हुए देखी? बनानेवाले की बात नहीं कर रहा, बनते देखी? नीचे अग्नि जलती दिखती, उसके ऊपर बटलोई रखी दिखती, पर बननेवाला आँखों से नहीं दिखता । चावल से, दूध से पूछो इन दोनों के बीच में क्या हो रहा
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