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समय देशना - हिन्दी
२०५ भगवान् में भी ग्लानि कराती है ध्यान तो दो -
"मुनितन मलिन न देख घिनावें, तत्व कुतत्व पिछाने।" यह कौन करेगा? जिसका सम्यक्त्व दृढ़ होगा। यानी मल उठाना धर्म है। आपने एक व्रती की सेवा की। आचार्य महावीरकीर्ति महाराज आचार्य वीरसागर की वैयावृत्ति करने पहुँचे जयपुर । अपने हाथ से उनके मल को निकाला । जब कफ निकाला तो अंजलि आगे कर दी कि इसमें कर लो। वीर सागर जी ने कहा- नहीं, तुम मेहमान हो । तब महावीर कीर्ति ने उत्तर दिया-नहीं जो -
"निशदिन वृत्यावृत्य करैया, सो निश्चय भव नीर तिरैया ॥"
जब विपर्यास में इतनी श्रद्धा की, तो संसार है और समीचीन की श्रद्धा मोक्षमार्ग है। आनंद कहाँ है? श्रद्धा में। श्रद्धा नहीं है, तो ज्ञान भी आनंद नहीं देता, चारित्र भी आनंद नहीं देता। यदि श्रद्धा है, तो आनंदही-आनंद है। श्रद्धा है, इसलिए आप यहाँ सुन रहे हो, अच्छा लग रहा है आपको । प्राप्ति की आकांक्षा ही सुख है संसार में। पर की बहिन को पत्नी क्यों बनाया तुमने? प्राप्ति की आकांक्षा ने तुम्हें पराधीन कर दिया, तूने सुख मान लिया । एक असामान्य जाति के राग का फल है।
तो क्या चर्चा चल रही थी? आम का फल पहले पीला नहीं था हरा था। पीला हुआ, तो सहभाव था, कि नहीं? सहभाव में परिवर्तन हुए बिना आम पकता नहीं है । रस का रसत्व भाव ज्यों-का-त्यों है। परन्तु रस में परिणमन हुए बिना खट्टा आम मीठा हो नहीं सकता । खट्टेपन में मीठापन नहीं आया, रस गुण में परिणमन हुआ है। ज्ञानगुण की त्रैकालिक पर्याय ज्ञान मात्र ही ग्रहण करना । सहभाव यानी जिसका न हो कभी अभाव । मैं तिर्यञ्च योनि में जाऊँ, नरक में जाऊँ, देव बनूँ, सिद्ध बनूँ लेकिन मेरे ज्ञान का कभी अभाव नहीं होगा, ज्ञान गुण में परिणमन होगा, उसको नाना रूप नाम दे दिये जायेंगे, मति, श्रुत, अवधि आदि । आत्मा का सहभाव गुण क्या है, ज्ञान । यदि हम सहभाव में परिणमन नहीं मानेंगे, तो ज्ञान में परिणमन नहीं होगा, तो अशुद्ध ज्ञान का शुद्ध ज्ञान रूप परिणमन नहीं हो पायेगा और आत्मा त्रैकालिक भगवान नहीं बन पायेगी। यह द्रव्यानुयोग का सिद्धांत है, फिर करणानुयोग का सिद्धान्त कितना गहरा होगा?
पर-भावों से हटाना बुद्धि का विषय है। जैसे शरीर के परिणमन में चेतना काम करती है, वैसे ही चारों अनुयोग के परिणमन में, ज्ञानी जो चर्चा चल रही है वर्तमान में, यही काम में आयेगी। किसी भी अनुयोग को पढ़ना, पर इसके अभाव में कोई भी अनुयोग चलता नहीं। इसलिए जब विजातीय पर्याय में स्वजाति रहेगा, तब इस जीव के परिणमन से ही शरीर में परिणमन चलेगा। फिर भी स्वतंत्रता देखेंगे, तो जीव का जीवत्व परिणमन है, पुद्गल का पुद्गलत्व । शरीर थक जाये, वृद्ध हो जाये, उससे भी मोक्ष जा सकते हैं और आठ वर्ष के शरीर से भी मोक्ष जाते हैं। फिर शरीर के राग को छोड़कर के दो ही पर्याय देखना, एक नहीं देखना । इस शरीर का उत्पाद-व्यय स्वतंत्र है, मेरा उत्पाद-व्यय स्वतंत्र है। प्रत्येक दर्शन शाब्दिक कथन को करना जानता है, चार्वाक को छोड़कर । आत्मा के बारे में ध्यान देना, 'चेतना' शब्द का ज्ञान भी चेतना की प्राप्ति नहीं है। 'ध्रुव-ज्ञायक-भाव' शब्द का प्रयोग भी ध्रुव-ज्ञायक-भाव नहीं है। श्रद्धा होना चाहिए।
जिस भवन में मैं निवास कर रहा हूँ. उस भवन का कौन-सा कण तेरी चेतन पर्याय में सहयोग करेगा ? जिस दिन तेरी अर्थी उठेगी, उस दिन सब छूट जायेगा । आज पर के राग में रो रहा है, कल तेरे राग में कोई रोयेगा । तू किसको रो रहा है। जब ईट-चूने के मकान की एक ईट मेरे साथ जानेवाली नहीं है, फिर इस तन की सुन्दरता भी इस चेतन के साथ जाने वाली नहीं है। आप अपनी जवानी का फोटो देखो, और आज की..
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