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समय देशना - हिन्दी समयसार ग्रन्थ की बारहवीं गाथा में शुद्ध को शुद्ध का उपदेश देने को कहा और अशुद्ध को अशुद्ध का उपदेश देने के लिए कहा है। जो स्वभाव में अवस्थित होने की योग्यता रखते हैं, उनके लिए शुद्ध तत्त्व का कथन करें और जो स्वभाव में जाने की योग्यता नहीं रखते हैं, उनके लिए आप व्यवहार का व्याख्यान करें, लेकिन व्यवहार का व्याख्यान तो करें, परन्तु व्यवहार पर संतुष्ट न कर दें, दृष्टि निश्चय पर ही रखे। परमार्थ का व्याख्यान तो करें, परन्तु परमार्थ व्याख्यान पर संतुष्ट मत हो जाना । परमार्थ का व्याख्यान परमार्थ नहीं है। परमार्थ के व्याख्यान में जो व्याख्येयभूत शुद्धात्म तत्त्व है, वही उपादेय है। अन्यथा दो प्रकार के जीव नहीं समझना, जीव चार प्रकार के हैं। एक व्यवहार को ही उपादेय समझ रहा है, एक निश्चय को ही उपादेय समझ रहा है, एक व्यवहार के व्याख्यान में अपना मोक्ष मान रहा है, एक निश्चय के व्याख्यान में अपना मोक्षमार्ग मान रहा है। चारों-के-चारों पुरुष मोक्षमार्ग से शून्य हैं। समझ में आया ? एक व्यवहार मात्र को मोक्ष मान रहा है, व्यवहाराभासी ! एक निश्चयमात्र को मोक्षमार्ग मान रहा है, निश्चयाभासी । एक व्यवहार के व्याख्यान को करना जानता है, उसके पास व्यवहार रत्नत्रय है नहीं, व्यवहार धर्म है नहीं, मात्र व्यवहार धर्म पर व्याख्यान करने की शैली का ज्ञाता है। उसे 'धवला जी' की भाषा में कहना, व्यवहार द्रव्य आगम ज्ञाता । मात्र व्यवहार द्रव्य आगम का ज्ञाता। फिर उसमें एक शब्द और जोड़ दो द्रव्यआगम का द्रव्यज्ञाता, यानी व्यवहार दर्शन को जानता है, परन्तु भावना से शून्य है । मात्र उसे सत्य ज्ञान है । एक निश्चय की भाषा को जानता है, पर निश्चय के अनुभव से शून्य है । वह निश्चयनय आगम का द्रव्य ज्ञाता, यानि निश्चयनय जिस विषय को विषय कर रहा है, उस विषय को जानता तो है, पर उपयोग नहीं है। फिर मोक्षमार्गी कौन है ? निश्चय व व्यवहार दोनों को जाननेवाला मोक्षमार्गी नहीं है। क्योंकि जानने से न तो मोक्षमार्ग मिलता है, न बंध व मोक्ष मिलता है । क्यों ? जानने से मोक्ष होता, तो मोक्ष को मिथ्यादृष्टि भी जानते हैं । सात तत्त्वों का व्याख्यान वे भी कर सकते हैं । तत्त्वों के जानने से ही मोक्ष होता तो अभव्य मिथ्यादृष्टि भी ग्यारह अंगों का ज्ञाता होता है, तत्त्व को जानता है। तो विषयों को जानने से, वासनाओं को जानने से कामनाओं को जानने से यदि बंध होता है, तो सर्वाधिक बंधक केवली भगवान् होंगे। क्यों? जगत के चराचर द्रव्यों के ज्ञाता कौन ? सर्वज्ञ, केवली भगवान के ज्ञान में ऐसा कौन-सा विषय है, जो उनके ज्ञान का विषय न हो ? मैं 'अष्टसहस्त्री', 'प्रमेय कमलमार्तण्ड' से बोल रहा हूँ। यदि ज्ञान से बंध होता है, तो सर्वज्ञ को सर्वाधिक बंध होगा।
इस प्रकरण को लेकर ही हमने स्त्रीमुक्ति व केवली भुक्ति का निषेध किया है। इस सिद्धांत से किया है कि केवली भोजन करे और हमारा एक शुद्ध सम्यग्दृष्टि अणुव्रती श्रावक भी भोजन करने बैठे, उसके सामने कोई मृतक जीव आते दिख जाये, वह यदि वास्तव में सम्यक्दृष्टि होगा तो वह भोजन को ग्लानि करके छोड़ देगा । एक दिगम्बर मुनि हिंसक शब्द को सुनने मात्र से अंतराय कर लेते हैं । मुनिराज के आहारचर्या चल रही थी और सड़क पर किसी मृतक के बाजे बज रहे थे। कोई रो भी नहीं रहा था, लेकिन उन बाजों की आवाज पहचान लिए कि मातम के समय बजने वालों की आवाज है, इधर अंतराय हो गया। छोड़ दी अंजुली । गया जी में कई बार आचार्यश्री का और संघ का अन्तराय हुआ, क्योंकि वहाँ से ही रास्ता था निकलने का । सोलापुर में मुझे कई बार ग्रन्थ बन्द करना पड़ा, क्योंकि जिनालय के पास से ही रास्ता था जाने का । मूल विषय पर आओ। जब हमारा एक श्रावक भोजन छोड़ता है, मुनि महाराज पंचेन्द्रिय जीव के मृत शरीर को देखकर अन्तराय कर लेते हैं, जो केवली आहार करेंगे, उनके ज्ञान में सम्पूर्ण जगत का मल
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