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समय देशना - हिन्दी बस उसे देखता हूँ। जो हूँ, वह हूँ । छोड़ना धर्म नहीं। वह भी राग दशा है। ध्यान रखो, छठवाँ गुणस्थान सराग दशा है। इसमें छोड़ने की बात होती है। इसलिए जहाँ सराग छोड़ना समाप्त हो जाता है, वह वीतराग दशा है। छठवें गुणस्थान में छोड़ना पड़ता है, सातवें गुणस्थान में आहार नहीं होता है। आहार संज्ञा छठवें गुणस्थान तक है, उसके आगे आहार संज्ञा का अभाव है। यहाँ से पूर्ण अनशन स्वरूप शुरू हो रहा है। यानी सप्तम गुणस्थान की भूमिका प्रारम्भ करो चौथे गुणस्थान से ।
मैंने ऐसा क्यों कह दिया कि चौथे गुणस्थान से शुरू करो ? यदि सत्यार्थ चतुर्थ गुणस्थानवर्ती है, तो खायेगा राग से, खायेगा प्रेम से, फिर भी खाने के राग को स्वभाव नहीं मानेगा, राग को । दृष्टि वह यही रखता है कि यह विभाव- दशा है। फिर छोड़ने का विचार करता है । एकदेश वैराग्य को प्राप्त होता है, तब पंचम गुणस्थान की ओर जाता है। रुचि को कम करते हुए पंचम गुणस्थान की ओर बढ़ता है, और पंचम गुणस्थान
पहुँचकर फिर उसे लगता है कि यह भी ठीक नहीं है तो जैनेश्वरी दीक्षा के भाव बनाता है, और जैनेश्वरी दीक्षा लेकर सप्तम गुणस्थान का सीधे स्पर्श करता है। वहाँ स्थिरता नहीं है, इसलिए नीचे आ जाता है। वह छठवें व सातवें गुणस्थान में झूलता है। परम सत्य क्या है ? परम स्वरूप क्या है ? बस स्थिर हो जाओ, जिसे आचार्य जयसेन स्वामी ने आसन्न भव्य कहा है। जो आसन्न भव्यता है, वह शीघ्र मोक्ष जाने की एक कसौटी है। जिसका संसार अल्प है, जिसका संसार चुल्लू प्रमाण बचा है। बस, स्थिर होकर सुनना । अब कोई प्रेरित करे नहीं करे या कोई प्रेरणा दे, नहीं दे । सहज ही कषाय मन्द होते स्वयं समझ में आ जाती है। परीक्षा कर लेना । चलो, नगर में साधु आये हैं, उन्हें आहार देने का मन बना है। किसी ने कहा नहीं आपसे, यही है उपयोग की भद्रता यही है आसन्न भवितव्यता । कोई लेकर जाये, ठीक है, पुण्य है; लेकिन सहज परिणाम बन रहे हैं। सहज ही कषाय मन्द होती नजर आ रही है। अब तो विषयों से दूर होना चाहिए, कुछ नियम लेना चाहिए, मन में ऐसे सहज भाव आ रहे हैं। यह भद्रता की वृत्ति नजर आ रही है। भद्रता ही आसन्न भवितव्यता का लांछन है । क्यों ? किसी-किसी जानवर का चेहरा देखकर नहीं झलकता एक गाय को देखो कितनी भद्रता झलकती है, और जब प्रेम की दृष्टि से आपको देखती है। मानव को भी गऊ कहा जाता है। गऊ यानी वाणी, सरस्वती, जिनवाणी । जिनवाणी के पृष्ठों पर दुनियाँ जिनवाणी पढ़ती है, पर जिसके चेहरे पर जिनवाणी आ जाए उसका चेहरा गऊ दिखता है ।
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श्री सरस्वती नाम स्त्रोत्रम्
प्रथमं भारती नाम, द्वितीयं च सरस्वती । तृतीयं शारदा देवी, चतुर्थं हंसगामिनी ॥४॥ पंचमं विदुषांमाता, षष्ठं वागीश्वरि तथा । कुमारी सप्तमं प्रोक्तं, अष्टमं ब्रह्मचारिणी ॥५॥ नवमं च जगन्माता, दशमं ब्राह्मिणी तथा । एकादशं तु ब्रह्माणी, द्वादशं वरदाभवेत् ॥६॥ वाणी त्रयोदशं नाम, भाषाचैव चतुर्दशं ।
पंचदशं च श्रुतदेवी, षोडशं गौर्निगद्यते ॥७॥
वाग्वादिनी व हंसवाहिनी जिनवाणी के पर्यायवाची नाम हैं। अन्य कोई को ग्रहण नहीं कर लेना । जिनवाणी का सोलहवाँ नाम गऊ है । 'विश्वलोचन शब्दकोष', में इस गौ को वाणी कहा है। जैसे गाय का
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